उज्जैन, अग्निपथ। महाकालेश्वर मंदिर के सामने खड़ा एक शख्स…, कभी महाकाल के शिखर को निहार रहा था कभी मंदिर के सामने के मलबे के ढेर को टकटकी लगाए देखता रहा… बीच-बीच में आंखों से पानी की बूंदे टपकती तो उन्हें गालों से नीचे उतरने से पहले ही पोंछ लेता।
शायद यह शख्स खुद को मजबूत और परिस्थितियों से लडऩे वाला साबित करना चाहता था लेकिन ऐसा कर नहीं पा रहा था। खुद ही खुद के मन को समझाते हुए आगे बढ़ा, साइकिल उठाई और रवाना हो गया। महाकाल के बाहर मलबे का ढेर देखकर दु:खी होने वाले इस शख्स का यहां न मकान था, न यहां ये किराएदार था। फिर भी विकास के हथोड़े की सबसे तगड़ी चोंट उसे ही लगी है।
महाकालेश्वर मंदिर के सामने वाले 10 मकानों में किराए की दुकाने लेकर विभिन्न तरह के कारोबार करने वाले 29 दुकानदारों का रोजगार छिन जाने के साथ ही 50 से ज्यादा ऐसे गरीब श्रमिक भी प्रभावित हुए है, जो वर्षो से इन दुकानों पर नौकरी किया करते थे।
पंवासा में रहने वाले 50 साल उम्र के महेश प्रजापत पिछले 17 साल से महाकालेश्वर मंदिर के सामने पेड़ा प्रसाद की दुकान पर काम करते थे। यहीं से उनके परिवार का भरण-पोषण हुआ करता था। अब दुकान नहीं है लिहाजा महेश भी बेरोगजार हो गए है।
ढांचा भवन में रहने वाले ब्रज उस्ताद का भी यहीं हाल है। कई सालों तक महाकालेश्वर मंदिर के सामने वाली दुकान पर नौकरी कर अपना परिवार चलाते थे। ब्रज उस्ताद अब बुढ़ापे में दूसरा कोई काम-धंधा तलाशने को मजबूर हो गए हैं।
मार्च 2020 से नवंबर 2021 तक लगभग 20 महीने तक लॉक-डाउन, लॉक डाउन के बाद की तंगी का सामना करते हुए 50 से ज्यादा श्रमिक कर्मचारियों ने खुद को केवल इस उम्मीद से संभाल रखा था कि माहौल ठीक होगा तो दुकानें फिर से बेहतर चलने लगेंगी, रोजगार फिर पटरी पर आ जाएगा। अब तो दूसरा रोजगार तलाशने की नौबत आ पहुंची है।
मलबा उठाने में जुटी मशीनें
महाकालेश्वर मंदिर के सामने वाले हिस्से में गुरुवार सुबह से शुरू की गई चौड़ीकरण की मुहिम के दूसरे दिन तक सभी 10 मकान तोड़ दिए गए। शुक्रवार शाम तक मशीनों के जरिए इनका मलबा हटाने का काम चलता रहा। तुड़ाई की वजह से महाकाल घाटी से महाकालेश्वर मंदिर के बीच वाले हिस्से में बिजली सप्लाय भी बंद है, लिहाजा पूरे इलाके में अंधेरा पसरा हुआ था। रात के वक्त भी यहां से मलबा उठाने का काम चलता रहा।