देश के ह्रदय स्थल मध्यप्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन ने पत्रकारिता के क्षेत्र में एक से बढक़र एक दैदीप्यमान नक्षत्र दिये। स्वर्गीय ठाकुर शिवप्रताप सिंह, स्वर्गीय अवंतीलाल जी जैन, स्व. प्रेम भटनागर, स्व. शिवकुमार जी वत्स, स्व. गोवर्धनलाल जी मेहता, स्व. प्रेमनारायण पंडित, स्व. मानसिंह जी राही, स्व. रामचंद्र श्रीमाल, स्व. मानसिंह बैस, स्व. सत्यनारायण जी गोयल, स्व. रामकिशोर गुप्ता, स्व. प्रकाश जी उप्पल, स्व. विमल चंद जी जैन, स्व. श्रवण सिंह तोमर, स्व. राजेश जैन ऐसी और भी विभूतियों ने अपने पत्रकारिता धर्म का निर्वहन किया और लेखनी के माध्यम से समाज सेवा की।
बेखौफ होकर कलम जब चलती थी तो अच्छे-अच्छे सूरमाओं के होश उड़ जाया करते थे। मालवा अंचल की पत्रकारिता के क्षेत्र में हमें यह कहने में गर्व होता है कि इस पुरातन नगरी उज्जैन ने पड़ोस के महानगर की पत्रकारिता को बहुत पीछे छोड़ दिया था। आज भी देश और प्रदेश की राजधानी में उज्जैन की पुरानी पीढ़ी के पत्रकार सुरेश मेहरोत्रा, ओम प्रकाश मेहता, आलोक मेहता जी और नयी पीढ़ी में कपिल शर्मा जैसे पत्रकारों ने उज्जैन का नाम गौरवान्वित कर रखा है।
इस सच को स्वीकार करने में जरा भी संशय नहीं होना चाहिये कि समाज के हर तबके, हर वर्ग में नैतिक मूल्यों में भारी गिरावट आयी है उसी का शिकार वर्तमान पत्रकारिता भी हो गयी है क्योंकि पत्रकार और पत्रकारिता भी समाज का ही अंग है, फिर भी पत्रकारिता के चरित्र में राष्ट्रीय स्तर के समाचार पत्रों और इलेक्ट्रानिक चैनलों से लेकर उज्जैन जैसे छोटे शहर में पत्रकारिता में इतनी गिरावट आना प्रजातंत्र, समाज, शहर, प्रदेश, देश सबके लिये चिंता का विषय होना चाहिये।
ग्लैमरस की चाह और पत्रकारिता की आड़ में अवैध और अनैतिक कार्य करने वाले नवजवान इस पेशे में भारी संख्या में अपनी आमद दे रहे हैं जो सम्पूर्ण पत्रकारिता के लिये खतरा बन गये हैं। हाल ही में उज्जैन में ही चार तथाकथित पत्रकारों द्वारा नकली पुलिसकर्मी बनकर महिला से मंगलसूत्र, मोबाइल और नकद रुपये ऐठने की घटना सामने आयी थी जिसमें पत्रकारों पर प्रकरण दर्ज किया गया जिसमें से कुछ पत्रकार तो अभी भी ‘कृष्ण मंदिर’ में ही है।
ऐसी घटनाएं पत्रकारिता के इस पवित्र पेशे को शर्मसार करती है। अब तो आलम यह हो गया है कि किसी को पत्रकार के रूप में अपना परिचय देना भी लाजिमी ना रहा। थाने, अस्पताल, मंदिर, न्यायालय, सरकारी महकमे भी दलाल पत्रकारों की गिरफ्त में आ चुके हैं इन सब जगह आपको काम करवाने के लिये दलाल पत्रकार उपलब्ध हो जायेंगे। दिन भर शासकीय कार्यालयों में अधिकारियों, कर्मचारियों के ना चाहने पर भी अनावश्यक रूप से बैठकर गप्पे मारना और इधर की उधर लगाना पत्रकारों का शगल बन गया है।
पहले पत्रकारों और पत्रकारिता की धाक इस कदर होती थी कि नेता हो या अधिकारी वह स्वयं पत्रकारों से मिलने उनके कार्यालयों में जाया करते थे। पत्रकारिता के गिरते स्तर ने तलुए चाटने वाले पत्रकारों की एक नयी फौज खड़ी कर दी है।
बीते कुछ दिनों से उज्जैन की पत्रकारिता में एक नया चलन देखने को मिल रहा है प्रेस से संबंधित व्हाटसअप ग्रुपों पर तथाकथित मीडिया मैन दो ग्रुपों में बंटे नजर आते हैं, चाहे वह उपनिरीक्षक विकास देवड़ा पर लगे यौन शोषण का आरोप हो या फिर नगर पुलिस अधीक्षक पल्लवी शुक्ला पर 5 लाख रुपये माँगने का लगा आरोप हो।
आरोपियों का इस तरह पक्ष लेकर उनकी तारीफ में कसीदे लिखते हैं जैसे वह कलमकार न होकर पैरवी करने वाले वकील हो। वह पुलिस जाँच शुरू होने के पहले ही अपने पक्षकार को क्लीन चिट दे देते हैं। पत्रकारिता को नुकसान पहुँचाने वाली चापलूसी भी इस पेशे में धीरे-धीरे नासूर बन रही है जो इसे रसातल में ले जायेगी।