जनपद अध्यक्ष-उपाध्यक्ष चुनाव के खिलाफ लगी याचिका हाईकोर्ट से खारिज
उज्जैन, अग्निपथ। उज्जैन जनपद पंचायत में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के चुनाव के बाद कोर्ट पहुंचे विवाद का निराकरण हो गया है। हाइकोर्ट ने भाजपा के निर्वाचित सदस्यों की तरफ से लगाई गई याचिका खारिज कर दी है। उज्जैन जनपद जनपद चुनाव में कांग्रेस की जीत पर अब हाइकोर्ट की भी मुहर लग गई है। कोर्ट ने अपने फैसले में यह माना है कि चुनाव प्रक्रिया में कहीं दोष नहीं था। हाईकोर्ट का यह फैसला उज्जैन दक्षिण के विधायक और उच्चशिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव के लिए किसी झटके से कम नहीं है। उज्जैन जनपद में बहुमत के बावजूद भाजपा आपसी फूट में यहां अपना अध्यक्ष और उपाध्यक्ष नहीं बना सकी थी।
बुधवार को हाईकोर्ट इंदौर बैंच में जस्टिस सुबोध अभ्यंकर की कोर्ट में भाजपा के 11 निर्वाचित जनपद सदस्यों की ओर से लगाई गई याचिका को खारिज करने के आदेश जारी हुए है। 27 जुलाई को उज्जैन जनपद में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद का चुनाव हुआ था। इस चुनाव में अध्यक्ष पद पर कांग्रेस की विद्याकुंवर देवेंद्र सिंह पंवार और उपाध्यक्ष के रूप में कांग्रेस के नासिर पटेल ने चुनाव जीत लिया था। अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर चुनाव की प्रक्रिया को भाजपा सदस्यों की तरफ से हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी।
उच्चशिक्षा मंत्री के लिए इसलिए झटका
उज्जैन जनपद के 25 वार्ड का अधिकांश हिस्सा उज्जैन दक्षिण विधानसभा क्षेत्र में ही आता है। दक्षिण उच्चशिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव का निर्वाचन क्षेत्र है। उज्जैन जनपद में भाजपा समर्थित कुल 13 सदस्य चुनाव जीते थे, कांग्रेस समर्थित 12 सदस्यों को चुनाव में जीत हांसिल हुई थी। कांग्रेस से एक सदस्य ज्यादा होने के बाद भी भाजपा को जनपद चुनाव में करारी हार का सामना करना पड़ा था।
कांग्रेस की विद्याकुंवर देवेंद्र पंवार को 12 वोट मिले थे जबकि उनके विरूद्ध चुनाव लडी भंवरीबाई को एक भी वोट नहीं मिल सका था। उपाध्यक्ष पद पर कांग्रेस के नासिर पटेल के सामने तो भाजपा का कोई सदस्य नामांकन ही दाखिल नहीं कर सका था। चुनाव प्रकिया के खिलाफ उच्चशिक्षा मंत्री डा. मोहन यादव ने जनपद कार्यालय के बाहर धरना भी दिया था, प्रशासनिक अधिकारियों पर गुस्सा भी जताया था, लेकिन नतीजा उनके खिलाफ ही रहा।
एक नजर घटनाक्रम पर
- उज्जैन जनपद में भाजपा समर्थित 13 सदस्य और कांग्रेस समर्थित 12 सदस्य चुनाव जीते थे।
- बहुमत के मान से भाजपा का जनपद में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद पर कब्जा होना था।
- 27 जुलाई को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष पद के चुनाव हुए। इससे ठीक पहले भाजपा में फूट उजागर हो गई।
- भाजपा के केवल 9 ही निर्वाचित सदस्य वोट डालने पहुंच पाए, 4 सदस्यों के प्राक्सी वोट डलवाने की तैयारी करवाई गई।
- तय नियम है कि प्राक्सी वोटर केवल निर्वाचित जनप्रतिनिधि के निकटतम रिश्तेदार ही हो सकते है, जबकि भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं को प्राक्सी वोटर बनाकर भेजा था।
- पीठासीन अधिकारी ने इन्हें प्राक्सी वोटर मानने से ही इंकार कर दिया और वोट नहीं डालने दिए।
- हंगामे और शोर-शराबे के बीच कांग्रेस प्रत्याशी अपने सभी समर्थकों के वोट डलवाने में सफल रहे जबकि भाजपाई सदस्य हंगामा ही करते रह गए।