राजनैतिक प्रश्रय के बिना नहीं बन सकते अतीक जैसे विषवृक्ष

अर्जुन सिंह चंदेल

उत्तरप्रदेश के प्रयागराज में दुर्दान्त अपराध अतीक एहमद और उसके भाई की पुलिस अभिरक्षा में हुयी हत्या पूरी इलेक्ट्रानिक और प्रिंट मीडिया की सुर्खियां बनी हुयी है। इलेक्ट्रानिक मीडिया में तो आने वाले दो-तीन दिनों तक यही चलने वाला है। अतीक एहमद साधारण अपराधी नहीं था, वह पाँच बार का विधायक और एक बार सांसद भी रह चुका है। अतीक की मौत के बाद उसका इतिहास जानने से लगता है कि देश की आजादी के 75 वर्षों बाद भी हमारा प्रजातंत्र और देश के मतदाता परिपक्कव नहीं हो पाये है।

इलाहाबाद के फिरोज ताँगेवाले के घर जन्में अतीक ने 44 वर्ष पूर्व मात्र 17 साल की उम्र में ही जयराम नामक व्यक्ति की हत्या कर दी थी। चूँकि उस समय अतीक नाबालिग था इस कारण वह बच गया। 17 वर्षीय बाल अपराधी अतीक ने एक हत्या के बाद 5 वर्षों के भीतर ही समूचे इलाहाबाद क्षेत्र में अपराध की दुनिया में पैर पसार लिये। पुलिस, कानून अदालतें उसे नहीं बाँध पायी। अतीक पुलिस वालों का चहेता और कमाई का जरिया बन गया।

उस दौर में इलाहाबाद में चाँद बाबा नामक अपराधी का सिक्का चलता था। अतीक ने चाँद बाबा के पूरे नेटवर्क को नेस्तानाबूद करके उसके साम्राज्य पर कब्जा कर लिया। जब अतीक ने अपराधों से शक्ति और धन संपदा अर्जित कर लिया तो उसने खादी धारण कर ली। यह अतीत वाली गाँधी जी की खादी नहीं थी यह आजादी के बाद वाली खादी थी जो नेता बनने के स्वाँग रचने के काम आती है।

अतीक ने भी वही किया प्रजातंत्र की देन उस खादी को पहनकर उसकी आड़ में हत्या, अपहरण, फिरौती जैसे गंभीर अपराधों की बाढ़ ला दी। खादीधारी अतीक पर अकेले ही 101 से अधिक और उसके भाई अशरफ पर भी 50 से ज्यादा मामले विचाराधीन है।

खादी धारण करने के बाद उसे इसे प्रमाणिक भी करना था अर्थात जनप्रतिनिधि भी बनना था ताकि वह नेता रूपी सुरक्षा कवच प्राप्त कर सके। सन् 1989 में इलाहाबाद की पश्चिम विधानसभा सीट से डॉन चाँद बाबा के विरुद्ध निर्दलीय चुनाव लड़ा और धनबल-बाहुबल के कारण पहली बार विधायक बनने में सफल रहा।

अतीक के विधायक बनने के कुछ माह बाद ही चाँद बाबा की हत्या हो गयी। 89 के बाद 1991 और 1993 में भी अतीक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीतकर विधानसभा पहुँचने में सफल रहा। 1996 में वह चौथी मर्तबा समाजवादी पार्टी से विधायक बना। अतीक किसी भी दल का सगा नहीं रहा वह दल बदलता रहा।

2002 में वह अपना दल के टिकट पर इलाहाबाद पश्चिम विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर पाँचवी बार विधायक बन बैठा। अब उसकी जड़े राजनीति में गहरी हो चली थी। रसूखदार राजनैतिक दलों और उसके नेताओं से संपर्क के कारण पुलिस की हिम्मत उस पर हाथ डालने की नहीं थी। पुलिस और कानून अतीक के सामने बौने साबित हो गये थे। अतीक की बढ़ती महत्वाकांक्षा के कारण वह 2004 में फूलपुर संसदीय क्षेत्र से सांसद का चुनाव लड़ा और जीतकर प्रजातंत्र के पवित्र मंदिर संसद में प्रवेश पाने में सफल हो गया।

जब आपराधिक मानसिकता के व्यक्ति को संवैधानिक राजनीतिक सुरक्षा कवच मिल जाए तो अपराध की भूमिका उसके राजनैतिक विस्तार का कारण बन जाती है। अतीक के अपराध व राजनीति में बढ़ते कद व लोकप्रियता के कारण राजनैतिक दल क्या काँग्रेस, क्या भाजपा, क्या सपा, क्या बसपा सभी उसके आगे शरणम गच्छामि होने लगे। भाजपा जैसे राष्ट्रवादी राजनैतिक दल को भी अतीक ने समर्थन दिया था।

25 जनवरी 2005 को प्रयागराज में दिनदहाड़े बहुजन समाज पार्टी के विधायक राजूपाल को सडक़ पर दौड़ा-दौड़ा कर गोलियों से छलनी कर दिया गया था। वह अतीक के अपराधों की पराकाष्ठा थी। प्रथम सूचना रिर्पोट में मृत राजू पाल की पत्नी पूजा पाल ने अतीक अशरफ सहित 9 लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करायी थी।

राजू पाल हत्याकांड के चश्मदीद गवाह उमेश पाल थे जो पेशे से वकील भी थे उन्होंने12 वर्षों तक न्याय के लिये लड़ायी लड़ी तब उच्चतम न्यायालय ने सीबीआई जाँच के आदेश दिये। सीबीआई ने जाँच की और हत्याकांड में 18 अभियुक्तों के विरुद्ध चार्जशीट दाखिल की।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दो माह के अंदर इस हत्याकांड की सुनवाई का आदेश दिया। उमेश पाल की सक्रियता से नाराज होकर अतीक ने 24 फरवरी 2023 को उमेश पाल सहित दो पुलिसकर्मियों की दिनदहाड़े हत्या करवा दी। जब व्यवस्था के संवैधानिक अंग पुलिस, न्याय और वकील कानून के रास्ते अपराधी को अंजाम तक पहुँचाने में असफल रहे तब अतीक हत्याकांड को अंजाम दिया गया जो भविष्य के लिये घातक है यदि कानून और संविधान पर देशवासियों का भरोसा उठ गया तो अराजकता की स्थिति आ जायेगी।

प्रजातंत्र पर भी प्रश्न लग रहे हैं कि राजनैतिक दल क्यों ऐसे अपराधियों को उम्मीदवार बना देते हैं साथ ही फूलन देवी को सांसद बनाने की भूल करने वाला भारतीय मतदाता क्या अभी भी परिपक्कव नहीं हो पाया है।

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