महाकाल मंदिर में प्राचीन पशुपतिनाथ को पुन: मिलेगी छत, तोडऩे वालों ने शुरू किया निर्माण
उज्जैन, अग्निपथ। श्री महाकालेेश्वर मंदिर परिसर में विराजित भगवान पशुपतिनाथ को अब पुन: छत मिलने वाली है। चार दिन धूप में रखने के बाद उनके गुनहगारों ने अब मंदिर की छत निर्माण का काम पुन: शुरू कर दिया है। जिस तरह रातों रात मंदिर तोड़ा गया थाा,उसी तरह रातों रात उसे बनाया भी जा रहा है।
श्री महाकालेश्वर मंदिर परिसर में जूना महाकाल के सामने स्थित अतिप्राचीन पशुपतिनाथ का मंंदिर बुधवार 31 मई की रात को आश्चर्यजनक रूप से तोड़़ दिया गया था। बुधवार 31 मई की रात तक यहां पर मंदिर सही सलामत था। गुरुवार 1 जून की सुबह जब यहां साफ-सफाई और पूजन करने वाले पंडित जी पहुंचे तो उन्हें यहां सिर्फ ओटला मिला। यहां से मंदिर टूट चुका था। मंदिर की छत चारों पिलर सबकुछ टूट चुके थे। मां पार्वती, भगवान नंदी की प्रतिमाएं गायब थीं।
जबकि भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा आधी टूटी ओटले पर विराजित थीं। खास बात तो यह है कि मंदिर तोड़े जाने का वहां कोई अवशेष भी नहीं था। प्राचीन पिल्लर, मंदिर की छत, मूर्तियां, आदि कोई भी सामग्री वहां नहीं छोड़ी गई थी। सभी को रातों रात हटा दिया गया था। इस मामले को समाचार आज ने तुरंत 1 जून को ही उजागर कर दी थी। हैरानी की बात तो यह थी कि मंदिर टूटने की घटना के तीन दिन बाद तक भी मंदिर प्रशासन इस घटना पर मौन साधे हैं।
बड़े वाहनों के लिए मंदिर तोड़ दिया, मूर्ति-अवशेष मलवे में फेंके
सूत्रों के मुताबिक महाकाल मंदिर परिसर में काम कर रही निर्माणकर्ता एजेंसी को बड़े वाहनों की आवाजाही में परेशानी आ रही थी, इस कारण उसने मंदिर का छत्र तोड़ दिया गया था और रातोंरात मंदिर से निकले प्राचीन छत के अवशेष को मलवे में फेंक दिया गया। इसी दौरान टूटी गई प्राचीन प्रतिमाएं भी मलबे में ही फेंक दी गई है। निर्माणकर्ता एजेंसी के इस कृत्य में मंदिर प्रशासन की सहमति के स्पष्ट नजर आ रही है।
अब रातों रात बनने लगा मंदिर
इस मामले एक और हैरतअंगेज बात यह है कि जिस तरह रातों रात मंंदिर टूटा थ, उसी तरह अब रातों रात निर्माण कार्य भी शुरू हो गया है। शनिवार 3 जून की रात को मलबे में से मंदिर की प्राचीन शिलाओं को तलाशकर मंदिर पर खड़ा किया गया है। सूत्रों के मुताबिक अगली एक-दो रातों में मंदिर बना दिया जायेगा। हालांकि टूट चुकी प्राचीन शिलाओं की जगह मंदिर में अन्य सामग्री का उपयोग किया जा सकता है। वहीं टूट चुकी प्रतिमाओं की जगह नई प्रतिमाएं भी स्थापित की जा सकती हैं।