दक्षिण में भाजपा पर अपशकुनों की काली छाया

डॉ. यादव

– अर्जुन सिंह चंदेल

कल हमने दक्षिण विधानसभा को लेकर काँग्रेस पार्टी में चल रही उठापठक का जिक्र किया था। आज बात करेंगे दक्षिण में भाजपा के हालात पर। काँग्रेस की फूट का लाभ उठाकर भारतीय जनता पार्टी ने इस विधानसभा सीट को अपनी परंपरागत सीट में तब्दील करने में सफलता पा ली है। वर्ष 2003 में हुए विधानसभा चुनावों से भाजपा ने पीछे पलटकर नहीं देखा।

2003 व 2008 में शिवनारायण जागीरदार व 2013 तथा 2018 में मोहन यादव इस विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी का परचम फहराने में सफल रहे। 2018 में हुए चुनाव में भाजपा प्रत्याशी मोहन यादव को 78178 व काँग्रेस प्रत्याशी राजेन्द्र वशिष्ठ को 59218 मत मिले थे। मोहन यादव लगभग 19 हजार मतों से चुनाव जीते थे। 2013 के चुनाव से 5000 हजार अधिक मतों से विजयश्री का वरण किया था।

भाग्य के धनी मोहन यादव पार्टी के अपने साथियों को पीछे छोड़ते हुए दूसरी बार के विधायक होते हुए केबिनेट मंत्री पद पाने में सफल रहे, जबकि उज्जैन जिले से तीन बार के विधायक बहादुरसिंह चौहान और वरिष्ठ नेता व छह बार के विधायक पारस जैन भी मंत्रिमंडल में अपने लिये स्थान नहीं बना पाये। 2013 और 2018 के चुनावों में मोहन जी के भाई नारायण यादव ने एक सुलझे हुए राजनैतिक रणनीतिकार की भूमिका निभायी और जीत दिलवायी। पता नहीं ना जाने किस की नजर मोहन जी की लोकप्रियता पर लग गयी।

जिस दिन से महाकाल लोक में हवा से ऋषियों की मूर्तियां गिरी बस उसी दिन से अपशकुनों की शुरुआत हो गयी मूर्तिकांड से पूरे देश में प्रदेश की भाजपा सरकार बदनाम हुयी जिसके फलस्वरूप मोहन जी का दामन भी नहीं बच सका। जैसे-तैसे इस अपशकुन की आग ठंडी पड़ी ही थी कि उज्जैन शहर के मास्टर प्लान का जिन्न बोतल से बाहर आ गया।

सिंहस्थमुक्त हुयी भूमियों में से कुछ भूमियां मोहन जी के परिवार वालों के नाम निकल आयी। काँग्रेस ने इस मौके को पकड़ लिया और पूरे प्रदेश में मंत्री मोहन यादव के खिलाफ सबूतों के साथ मोर्चा खोल दिया। इस बारे में पत्रकारवार्ताओं, पुतला दहन के साथ ही साधु-संतों के आक्रोश का शिकार भी मोहन जी बन गये।

चौतरफा हुए हमलों से मुख्यमंत्री शिवराज जी भी घबरा गये और उन्हें यू टर्न लेना पड़ा और मास्टर प्लान में मंत्री जी के रिश्तेदारों की भूमि जिन्हें मुक्त किया गया था उन्हें डिनोटिफाई करके वापस कृषि भूमि (सिंहस्थ हेतु आरक्षित) घोषित कर दिया गया। मोहन जी की एक इस छोटी-सी भूल ने उनकी लोकप्रियता को जमींदोज कर दिया।

कहते है ना राजनीति फर्श से अर्श पर अर्श से फर्श पर लाने में देर नहीं करती वही हाल दक्षिण विधानसभा के फिर से सशक्त दावेदार माने जा रहे मोहन जी के साथ हुआ। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के साथ भाजपा के दिग्गज नेताओं के भी वह कोप-भाजन का शिकार हो गये। इसके बाद उच्च शिक्षा मंत्री के गृह नगर में ही विक्रम विश्वविद्यालय में फर्जी पीएचडी कांड हो गया जिसमें लोकायुक्त में मोहन जी के खास सिपहसालार कुलसचिव पौराणिक के साथ 4 अन्य प्रोफेसरों को आरोपी बना दिया। इस कांड से भी उच्च शिक्षा मंत्री की छवि धूमिल हुयी। प्रोफेसरों के तबादलों में ली जा रही रिश्वत का आडियो भी वायरल हुआ।

लब्बोलवाब यह है कि अपशकुनों की काली छाया मोहन जी का पीछा नहीं छोड़ रही है। मोहन जी राजनीति के बहुत माहिर खिलाड़ी है ऐन-केन-प्रकारेण यदि वह आने वाले चुनाव में भाजपा से टिकट ले भी आये तो उनकी जीत पिछले दो बार के चुनावों की तरह आसान नहीं होगी क्योंकि मतदाताओं के दिलो-दिमाग में खराब हुयी छवि को साफ करना इतना आसान नहीं होगा। भारतीय जनता पार्टी के कर्णधार भी चिंतित होंगे कि मोहन जी की डैमेज छवि को ठीक करने का क्या इंतजाम किया जाए और यदि ऐसा ना हो सका तो क्या दक्षिण के लिये कोई विकल्प तलाशा जाए?

जय महाकाल

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