केरल यात्रा वृत्तांत भाग-10 : देश के बाकी अभ्यारणों की तरह ‘पेरियार’ में भी नहीं दिखे बाघ

अर्जुन सिंह चंदेल

कभी ना भूलने वाले पारंपरिक दोपहर भोजन के बाद हमें जाना था इडुक्की और पथानामथिट्टा जिलों में फैली हुयी पेरियार झील को और उसके अंदर स्थित पेरियार नेशनल पार्क को देखने जो थेक्कड़ी का मुख्य आकर्षण है। थेक्कड़ी केरल और तमिलनाडु की सीमा पर स्थित इसका थेक्कड़ी नाम अँग्रेजी के ‘थेक्कू’ शब्द के कारण पड़ा जिसका शाब्दिक अर्थ होता है ‘सागौन’।

समुद्र तल से 900 से 1800 मीटर ऊँचाई पर स्थित यह जगह मन, शरीर और आत्मा को तृप्त करने के लिये पर्याप्त रूप से शांत है। लहराती पहाडिय़ां, मनमोहक हरियाली, झिलमिलाती झीलें और ठंडी सुगंधित हवा आपको दीवाना बना देती है। कभी त्रावणकोर के राजाओं का शिकारगाह रहा सन् 1950 में पेरियार राष्ट्रीय उद्यान बना और सन् 1978 में इसे बाघ अभ्यारण घोषित कर दिया गया।

झील और अभ्यारण का नाम प्रमुख द्रविड नेता इरोड वेंकट रामासामी जिन्हें ‘पेरियार’ के नाम से जाना जाता था उनके नाम पर रखा गया ‘पेरियार’। बाघ अभ्यारण और झील थेक्कड़ी शहर से चार किलोमीटर दूर स्थित है। टेम्पो ट्रेवलर में सवार होकर हम सारे लोग निकल पड़े थेक्कड़ी की आत्मा, पेरियार और पंबा नदी से मिलकर बनी पेरियार झील को देखने।

समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के लिये जानी जाने वाली यह झील सुखद जलवायु वाली पर्यटन स्थल है यहाँ की शांति, प्रकृति प्रेमियों से लेकर रोमांच चाहने वालों को अपनी हरियाली और विविधता के आकर्षण के कारण खींच लाती है।

टेम्पो टे्रवलर ने 15 मिनट में हमें केरल वन विभाग की टिकट खिडक़ी के सामने छोड़ दिया जहाँ से हमें टिकट लेकर वन विभाग की बसों में बैठकर जंगल से गुजरते हुयी पेरियार झील तक पहुँचना था।

पेरियार नेशनल पार्क में हाथी, बाघ, तेंदुएं, सांभर, हिरण, भौंकने वाले हिरण, जंगली सुअर, भारतीय बाइसन (भैसे) के दिखायी देने की संभावना रहती है। वन विभाग की बस ने हमें झील के तट पर उतार दिया जहाँ हमें केरल राज्य की 244 किलोमीटर सबसे लंबी और बड़ी झील में सैर करनी थी।

घनी हरियाली से भरी सुरम्य पर्वत श्रृंखलाओं की पृष्ठ भूमि वाली पेरियार झील बहुत सुंदर नजर आ रही थी। 777 वर्ग किलोमीटर में फैले पेरियार टायगर रिजर्व का कुछ हिस्सा भी हमें देखना था। दो मंजिला बोट में लगभग 100-125 पर्यटक सवार थे। सभी यात्रियों को लाईफ जैकेट अनिवार्य रूप से पहनाये गये थे। लगभग 2 घंटे तक हम 100 साल पुरानी पेरियार झील में घूमकर इंतजार करते रहे कि हाथियों का झुंड आ जाये, बाघ दिखायी दे जाये पर हुआ वही जो अभी तक होता आया है, चाहे वह रणथम्भौर हो या बाँधवगढ़ या कान्हा का नेशनल पार्क।

बाघ को छोडक़र सब कुछ दिख जाता है। पेरियार नेशनल पार्क में हमें सांभर, हिरण, जंगली भैसों के अलावा कुछ दिखायी नहीं दिया। हाँ पूर्ण रूप से काले बंदर तो बस से आते समय रास्ते में भी दिखायी दिये और यहाँ अभ्यारण में भी दिखायी दिये।

ज्यादा मजा आ नहीं रहा था तभी बहुत तेज बारिश शुरू हो गयी। बौछारों के कारण साईड में बैठे लोग इधर-उधर होने लगे। वन विभाग के कर्मचारी जो सब कुछ जानते हैं कि यहाँ हाथी-बाघ तो दिखने वाले हैं नहीं वह मोबाइल कैमरे लोगों से लेकर दूरबीन के आगे लगाकर बंदरों, भैंसों और हिरण के फोटो खींचकर झूठी सांत्वना के साथ दे रहे थे। साथ ही केरल पर्यटन विकास निगम की एक पाँच सितारा होटल भी दूर से दिखाते हैं जो अभ्यारण के बीच में बना हुआ है जिसमें 6 कमरें हैं और प्रतीक्षा सूची हमेशा बनी रहती है।

शाम को 4.30 का समय हो रहा था होटल लौट आये। वापस शाम को 6 बजे जाना था कुछ अलग हटकर देखने।

शेष कल

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