उज्जैन, अग्निपथ। बुधवार को शरद पूर्णिमा पर श्री महाकालेश्वर मंदिर सहित शहर के सभी प्रमुख मंदिरों पर शरद पूर्णिमा उत्सव मनाया गया। संध्या आरती के पहले बाबा महाकाल को केसरिया खीर का भोग अर्पित कर आरती की गई। भगवान श्रीकृष्ण की शिक्षा स्थली सांदीपनि आश्रम और द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर पर भी भगवान को खीर प्रसादी का भोग अर्पित कर आरती हुई।
श्री महाकालेश्वर मंदिर में बुधवार को शरद पूर्णिमा पर बाबा महाकाल को संध्या की आरती के पहले केसरिया खीर का भोग लगाकर पूजन-अर्चन कर शरद उत्सव मनाया गया। बाबा महाकाल की आरती के पश्चात पुजारी कक्ष में भगवान का पूजन हुआ। इसके बाद श्रद्धालुओं को खीर का प्रसाद वितरित हुआ। मंगलनाथ मार्ग स्थित सांदीपनि आश्रम और द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर सहित अन्य मंदिरों में भी खीर का भोग भगवान को अर्पित किया गया।
सांदीपनि आश्रम के मुख्य पुजारी पं. रूपम व्यास ने बताया कि शरद उत्सव पर भगवान श्री कृष्ण, श्री बलराम, सुदामा को श्वेत वस्त्र धारण करवाए गए। संध्या के समय चंद्रमा की चांदनी में केसरिया दूध से बनी खीर रखी गई थी। खीर का भोग भगवान को लगाने के बाद शयन आरती हुई। इसके बाद उपस्थित सभी भक्तों को खीर का प्रसाद वितरित किया गया।
इसी तरह सिंधिया ट्रस्ट के द्वारिकाधीश गोपाल मंदिर के पुजारी मधुर शर्मा ने बताया कि शरद उत्सव पर संध्या के समय भगवान को खीर का भोग अर्पित किया गया। इसके बाद शयन आरती हुई। भक्तों को प्रसाद वितरित किया गया। शहर के कई धार्मिक स्थानों पर बुधवार को ही पूर्णिमा पर शरद उत्सव मनाया गया।
माना जाता है कि शरद पूर्णिमा पर मध्य रात्रि में चंद्रमा की कला अपने उच्च अंश पर होती है। इस दिन चंद्रमा की पूर्ण ऊर्जा वनस्पति पर पड़ती है। यह वनस्पति और फसलें अमृत के रूप में हमें प्राप्त होती है। चंद्रमा का यौवन पूर्णिमा पर प्रबल माना जाता है। इसलिए परंपरा में खीर बनाकर चंद्रमा के सामने रखने के पश्चात खीर को सेवन करने का विधान बताया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो लोग मध्य रात्रि तक रखा गया खीर का प्रसाद लेते है, उन्हें अस्थमा आदि व्याधि नही होती।