118 दिन के चातुर्मास 12 नवंबर को होंगे समाप्त

देव प्रबोधिनी एकादशी से शुरू होंगे मांगलिक कार्य

उज्जैन, अग्निपथ। एकादशी तिथि 11 नवंबर को संध्याकाल 06 बजकर 46 मिनट पर शुरू होगी और 12 नवंबर को संध्याकाल 04 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी। सनातन धर्म में सूर्योदय से तिथि की गणना की जाती है। अत: 12 नवंबर को देवउठनी एकादशी मनाई जाएगी।

ज्योतिर्विद प अजय कृष्ण शंकर व्यास के अनुसार सभी लोगों को इस दिन का बेसब्री से इंतजार रहता है, क्योंकि इस दिन से भगवान विष्णु योग निद्रा से जाग जाते हैं, जिसके बाद सभी शुभ और मांगलिक कार्य 4 महीने बाद शुरू हो जाते हैं. देवउठनी एकादशी को देव प्रबोधिनी भी कहा जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और उनके निमित्त व्रत रखा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से चार महीने बाद जागते हैं और सृष्टि का फिर से संचालन करते हैं। इस दिन से ही चातुर्मास समाप्त होते हैं और शुभ-मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती है।

हिंदू सनातन वैदिक पंचांग का 8 वां महीना होता है कार्तिक, जो भगवान विष्णु को समर्पित है. कार्तिक महीने में किया गया स्नान, दान और तुलसी पूजा कभी न खत्म होने वाला पुण्य देते हैं. इनके प्रभाव से व्यक्ति मृत्यु के बाद जन्म-मरण के बंधन से मुक्ति होकर मोक्ष को प्राप्त होता है. जीवन मे सुख समृद्धि ऐश्वर्य आरोग्य विजय और मानसिक शांति की प्राप्ति होती है। यह चातुर्मास का अंतिम महीना होता है. कार्तिक मास को हिंदू धर्म में पुण्य मास कहा गया। इसलिए इस मास यानी महीने में विष्णु भक्त तीर्थ नदी के तट पर निवास करके मासपारायण व्रत करते हैं।

दीपक जरूर जलाना चाहिए

कार्तिक मास में प्रतिदिन गीता का पाठ करने से अनंत पुण्यों की प्राप्ति होती है। भगवान श्रीकृष्ण को कार्तिक का महीना सभी महीनों में अति प्रिय होता है। जो भी व्यक्ति इस माह में अन्नदान, दीपदान करता है उस पर कुबेर महाराज भी कृपा होती है। कार्तिक मास में दीपदान, तुलसी पूजन, भूमि पर सोना, दलहन की चीजों का त्याग करना, आत्म संयन और भोजन का संयम करना चाहिए। इस दिन शंख बजाना चाहिए और भगवान को शंख से स्नान कराना चाहिए। कार्तिक मास में तुलसी की सेवा और उसके सामने दीपक जलाने से भगवान विष्णु प्रसन्न प्रसन्न होते हैं।

इस दिन अबूझ मुहूर्त भी

दिवाली के दौरान लोग धन और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी और दैवीय तिजोरियों के कोषाध्यक्ष भगवान कुबेर की पूजा करते हैं। और इस तरह, जब तक देवउठनी एकादशी नहीं आती और भगवान विष्णु अपनी गहरी नींद से नहीं जागते, तब तक अन्य देवता बारी-बारी से ब्रह्मांड का प्रबंधन करते हैं। देव उत्तान एकादशी को नुतन वर्ष कहा जाता है यहा से शुभ कार्य प्रारंभ हो जाते है ।

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