उज्जैन, अग्निपथ। हमारी संस्कृति में भाषा का महत्व हमेशा से रहा है। इसके विभिन्न रूप अलग-अलग भागों में अनेक माध्यमों जैसे बोली, भाषा और उसके परिवेश के साथ दिखाई देते हैं, जिसे हम मातृभाषा के रूप में पहचानते हैं। इसलिए यह हमारी मां के समान है, जिसे हमें कभी नहीं छोडऩा हैं। यही हमारा एक राष्ट्र, एक नाम—भारत का अभियान है।
शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास, दिल्ली के प्रांत अध्यक्ष प्रो. राकेश ढंड ने हिंदी अध्ययनशाला एवं भारतीय भाषा प्रकोष्ठ, विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन, शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास की उज्जैन इकाई एवं भारतीय भाषा समिति के तत्वावधान में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस पर विक्रम विश्वविद्यालय के वाग्देवी भवन में आयोजित अंतर-भाषाई संवाद एवं मातृभाषा में हस्ताक्षर अभियान कार्यक्रम को मुख्य अतिथि के रूप में संबोधित करते हुए उपरोक्त उद्गार व्यक्त किए।
प्रो. ढंड ने अपनी मातृभाषा पंजाबी में उद्बोधन देते हुए कहा कि, अपनी भाषा की पहचान को कभी मत भूलो और कभी भी इसे नहीं छोड़ो। इसके साथ ही उन्होंने सभी को अपनी मातृभाषा में हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया।
हिंदी अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा ने मालवी बोली में अपना अध्यक्षीय उद्बोधन देते हुए कहा कि “हमारी भाषा ही संवेदना के संप्रेषण और शिक्षा का आधार है। इसके साथ ही मनुष्य का मौलिक चिंतन अपनी ही भाषा में होता है, जिसके कारण नए ज्ञान-विज्ञान का विकास हुआ है। प्रो. शर्मा ने इस अवसर पर बोलियों के संरक्षण के लिए सभी को आगे आने का आह्वान किया और यह संदेश दिया कि ग़ुलामी से मुक्ति का माध्यम भी भाषा ही होती है।
कार्यक्रम में शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास के संभागीय अध्यक्ष प्रो. राम मोहन शुक्ल, शिक्षा संचेतना के अध्यक्ष श्री प्रभु लाल चौधरी, हिंदी अध्ययनशाला की आचार्य डॉ. गीता नायक एवं ललित कला अध्ययनशाला के विभागाध्यक्ष डॉ. जगदीश चंद्र शर्मा ने भी अपने-अपने प्रेरणादायक विचार प्रस्तुत किए।
इस कार्यक्रम में विक्रम विश्वविद्यालय की विभिन्न अध्ययनशालाओं के विद्यार्थियों ने सहभागिता की। इनके द्वारा अपनी-अपनी बोली और भाषाओं जैसे मालवी, मारवाड़ी, पंजाबी, डोगरी, बुंदेली, बघेली, अवधी, ब्रज, बिहारी, बंगाली और मराठी में अपनी-अपनी प्रस्तुतियां सामने रखी। उन्होंने कविता-पाठ, निबंध लेखन और विविध विषयों पर भाषण की प्रस्तुतियाँ दी।