शिवनवरात्रि महोत्सव : भगवान महाकाल ने श्री उमामहेश स्वरूप में दिए दर्शन

उज्जैन, अग्निपथ। महाशिवरात्रि महापर्व के पूर्व श्री महाकालेश्वर मंदिर में चल रहे शिवनवरात्रि महोत्सव के दौरान भगवान श्री महाकालेश्वर अपने भक्तों को अलग-अलग स्वरूपो में दर्शन दे रहे हैं। शिवनवरात्रि के अष्टम दिवस सांध्य पूजन के पश्चात भगवान श्री महाकालेश्वर एवं माँ भगवती पार्वती ने सभी भक्तों को श्री उमा-महेश स्वरूप में दर्शन दिए।

मान्यता है कि, परम पिता परमेश्वर शिव और जगदम्बा माता श्री पार्वती के श्री उमामहेश स्वरुप के दर्शन करने से सभी भक्तों को मनवांछित फल प्राप्त होता है और उनकी सभी इच्छाए पूर्ण होती है। भगवान शिव त्याग, तपस्या, वात्सल्य तथा करुणा की मूर्ति है, जो सहज ही प्रसन्न हो जाते है एवं मनोवांछित फल देते है। 24 फरवरी 2025 सोमवार फाल्गुन कृष्ण एकादशी के शुभ दिन भगवान श्री महाकालेश्वर भगवान के श्री उमामहेश स्वरुप के दर्शन कर रहे भक्तों ने श्री महाकालेश्वर मंदिर का सम्पूर्ण प्रांगण जय श्री महाकाल के जयकारों से गुंजायमान कर दिया।

प्रात: श्री महाकालेश्वर मंदिर के नेवैद्य कक्ष में भगवान श्री चन्द्रमौलीश्वर का पूजन किया गया तथा कोटितीर्थ कुण्ड के पास स्थापित श्री कोटेश्वर महादेव के पूजन के पश्चात मुख्य पुजारी पं.श्री घनश्याम शर्मा के आचार्यत्व में 11 ब्राह्मणों द्वारा श्री महाकालेश्वर भगवान का अभिषेक एकादश-एकादशनी रूद्रपाठ से किया गया तथा संध्या पूजन के पश्चात बाबा श्री महाकालेश्वर व माँ उमा जी को नए वस्त्र धारण करवाये गये, साथ ही भगवान श्री महाकालेश्वर के श्री उमामहेश स्वरूप का श्रृंगार कर बाबा को मुकुट, मुण्ड माला एवं फलों की माला धारण करायी गयी।

आज शिव तांडव स्वरूप के दर्शन

25 फरवरी 2025 मंगलवार फाल्गुन कृष्ण द्वादशी तिथि प्रदोष पर्व पर भगवान श्री महाकालेश्वर जी ने श्री शिव तांडव के रूप में दर्शन देंगे। 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जायेगा।

मंदिर में चल रहा है नारदीय कीर्तन

श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति द्वारा इस वर्ष नौ दिवसीय नारदीय कीर्तन हेतु पुणे से राष्ट्रीय कीर्तनकार आयुर्वेदाचार्य डॉ.अजय अपामार्जने का कीर्तन प्रतिदिन सायं 05 से 06 बजे तक मन्दिर परिसर मे नवग्रह मन्दिर के पास संगमरमर के चबूतरे पर हो रहा है। हरिकीर्तन के आठवे दिन डॉ. अपामर्जने ने कथा में राष्ट्रसंत नामदेव जी का भजन ‘‘सापू कुछ छोड़े बिखु नहीं छोडे….’’ पर विवेचना की।

विश्व में प्रभु श्री रामजी के पूर्व रावण था, श्री कृष्णजी के पूर्व कंस था, प्रस्तुत भजन अनुसार सज्जनों को दुष्टों से हर समय सावधान रहना चाहिये, नहीं तो वह घात करते हैं। सज्जनों का अस्तित्व नष्ट करना चाहते है, इसीलिये हमारे सभी देव सशस्त्र है, राक्षसों का संहार करते हैं जैसे अवंतिका के (उज्जैनी के) राजा सम्राट विक्रमादित्य ने शको का संहार किया, उनकी कुलदेवी हरसिद्धि माता और विक्रमादित्य की कथा से कीर्तन का समापन हुआ।

भोलेनाथ के भक्त सम्राट की कथा से भक्तों ने आनंद प्राप्त किया। ‘‘जगत जननी जगदंबा भवानी…’’ यज भजन से वातावरण सुखमयी हुआ। कथा के दौरान तबला पर संगत श्री श्रीधर व्यास ने की।

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