उज्जैन। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा शासकीय कर्मचारियों को पदोन्नति का लाभ देने के लिए नये पदोन्नति नियम प्रस्तावित किए जा रहे हैं। इन नियमों में जबलपुर उच्च न्यायालय के अप्रैल 2016 के निर्णय तथा उच्चतम न्यायालय के आदेशों की पूरी तरह अवहेलना की जा रही है। सपाक्स इसका विरोध करेगी।
यह बात उज्जैन जिला सपाक्स समिति ने जिला अध्यक्ष अरविंद सिंह चंदेल के नेतृत्व में राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के नाम कलेक्टर आशीष सिंह को दिए ज्ञापन में बताई। आरोप है कि नये प्रस्तावित नियम वोट बैंक को देखते हुए अनुसूचित जाति/जनजाति के अधिकारियों व कर्मचारियों के पक्ष में बनाये जा रहे हैं जिससे सामान्य, पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारियों कर्मचारियों को पदोन्नति में नुकसान होगा।
प्रस्तावित नये नियमों से क्यों सहमत नहीं है सपाक्स
मप्र सरकार ने जून 2002 में पदोन्नति नियमों में फेरबदल करते हुए योग्यता व वरिष्ठता को ताक में रखकर अनुसूचित जाति के शासकीय कर्मियों के लिए 16 प्रतिशत व अनुसूचित जनजाति के शासकीय कर्मियों के लिए 20 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था नये पदोन्नति नियम के तहत लागू की। जून 2002 से 2015 तक इसी आधार पर पदोन्नतियॉं होती रहीं जिसकी वजह से अजा, अजजा के अधिकारी कर्मचारी प्रमोशन पाकर अपने से वरिष्ठ सामान्य वर्ग के अधिकारियों से ऊपर हो गये अर्थात उनके अधिकारी बन गये।
सन् 2016 में इस अन्याय पूर्ण आरक्षण नियमों को लेकर चुनौती देते हुए इसके विरूद्व सपाक्स संगठन द्वारा मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय जबलपुर में याचिका दायर की गयी थी। 30 अप्रैल 2016 को जबलपुर उच्च न्यायालय नें अपनें महत्वपूर्ण फैसले मे शासन के ‘पदोन्नति में आरक्षण नियम 2002’ को असंवैधानिक करार देते हुए पदोन्नति में आरक्षण निरस्त कर दिया था ।
इतना ही नहीं उच्च न्यायालय नें प्रदेश में वर्ष 2002 से वर्ष 2016 के मध्य आरक्षण का लाभ देकर किए गये प्रमोशनों को भी रद्द कर दिया था व ऐसे प्रमोशन पाये अजा-अजजा कर्मियों को पदावनत करने के आदेश भी सरकार को दिये थे ।
सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त नहीं किया हाईकोर्ट का फैसला
जबलपुर उच्च न्यायालय के उक्त महत्वपूर्ण फैसले के विरूद्व भाजपा की शिवराज सरकार नें सर्वोच्च न्यायालय में एक स्पेशल लीव पिटीशन दायर की थी सर्वोच्च न्यायालय ने मध्य प्रदेश सरकार की याचिका को ग्राह्य तो कर लिया किंतु ना तो उसने उच्च न्यायालय जबलपुर के फैसले को निरस्त किया ना ही सरकार को कोई स्थगन दिया।
सर्वोच्च न्यायालय ने को-स्टेटस की व्यवस्था करते हुए अनुसूचित जाति व जनजाति के कर्मियों के प्रमोशन पर रोक लगा दी। मध्यप्रदेश सरकार नें हठधर्मिता करतें हुए अजा अजजा के प्रमोशन के साथ अनावश्यक रूप से सामान्य पिछड़ा व अल्पसंख्यक के प्रमोशन पर भी रोक लगा दी सर्वोच्च न्यायालय में प्रकरण की सुनवाई के दौरान जून 2018 में एक आदेश पारित करते हुए सरकार को कहा कि जब तक संविधान पीठ का इस मामले में अतिंम फैसला नहीं आता तब तक सरकार कानून के दायरे में अनुसूचित जाति व जनजाति कर्मचारियों को प्रमोशन का लाभ दे सकती है ।
सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश को ढाल बनाकर मध्य प्रदेश सरकार नें अजा अजजा के कर्मचारियों को पदोन्नत करनें के लिए सन 2002 के विसंगतिपूर्ण नियमों में थोड़ा सा फेरबदल कर उन्हे नये पदोन्नत नियम बताकर प्रस्तावित कर दिया है और इसे शीघ्र लागू करनें का मन बना रही है ।
सपाक्स जिला समिति उज्जैन के अध्यक्ष अरविंद सिंह चंदेल नें बताया कि कर्मचारियों को पदोन्नति हेतु सरकार नें जो नये नियम प्रस्तावित किये हैं वह पुरानी शराब को ही नयी बोतल में भरकर पेश करनें जैसा है। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित नये नियम में उच्च न्यायालय के आर बी राय प्रकरण, सर्वोच्च न्यायालय के एम नागराज प्रकरण तथा को स्टेटस के निर्देशों की अनदेखी की गयी है।
आज ज्ञापन देनें वालों में प्रमुख रूप से अध्यक्ष अरविंद सिंह चंदेल, निर्भय निर्दोष पाठक शहर अध्यक्ष सपाक्स समाज, अभिषेक सोनी प्रदेश अध्यक्ष सपाक्स युवा संगठन अशोक दुबे संभागीय समन्वयक, चन्द्रेश पुरोहित, अमितोज भार्गव, योगेश चैरसिया, रवीन्द्र नागर, रामस्वरूप प्रजापति, संजय शुक्ला, बजरंग तोमर, इन्द्रवीर तोमर, कमर अली, अभय जोशी, एन आर विश्वकर्मा, संजय रघुवंशी, यादवेन्द्र त्रिपाठी, भरत कुमावत, मनोज तंवर, दिनेश पण्डया प्रमोद गुप्ता मौजूद थे।