नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी अदालतों में बलात्कार पीड़िता के नाम का उल्लेख किसी कार्यवाही में भी नहीं होना चाहिए। निचली अदालतों को इस प्रकार के मामलों से निपटते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए। शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ में एक सत्र अदालत के उस फैसले पर नाराजगी जताते हुए यह निर्देश दिया, जिसमें बलात्कार पीड़िता के नाम का उल्लेख किया गया था।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि यह पूरी तरह से स्थापित है कि इस प्रकार के मामलों में पीड़िता का नाम किसी भी कार्यवाही में नहीं आना चाहिए। पीठ ने कहा कि हम सत्र न्यायाधीश के फैसले पर अप्रसन्नता जताते हैं, जहां पीड़िता के नाम का उल्लेख किया गया है। पीठ ने अपने आदेश में यह बात कही और दोषी की ओर से दाखिल याचिका खारिज कर दी। याचिका में बलात्कार के मामले में उसे दोषी ठहराने के छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। पीठ ने कहा कि मामले के तथ्य के अनुसार हम इस विशेष अवकाश याचिका पर सुनवाई नहीं करना चाहते।
उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2019 के अपने फैसले में बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए जाने के निचले आदेश के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी थी। वर्ष 2001 में दर्ज मामले में महासमुंद की सत्र अदालत ने व्यक्ति को दोषी करार दिया था। उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि पीड़िता के बयानों और साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह सहमति से शारीरिक संबंध बनाने का मामला नहीं है।
गौरतलब है कि उच्चतम न्यायालय ने दिसंबर 2018 के अपने एक आदेश में कहा था कि दुष्कर्म और यौन प्रताड़ना के पीड़ितों के नाम और उनकी पहचान उजागर नहीं की जा सकती, भले ही उनकी मृत्यु हो चुकी हो।