माँ नर्मदे तेरी महिमा अपरंपार

बड़वानी से लौटकर अर्जुन सिंह चंदेल

मेरे बड़वानी प्रवास के दौरान ठीकरी से बड़वानी के बीच की यात्रा में सडक़ किनारे सैकड़ों की संख्या में जाते महिला-पुरुषों को पीठ पर सामान लादे और सफेद वस्त्रों में देखकर पत्रकारिता का जिज्ञासु विद्यार्थी होने के नाते मैंने गाड़ी रोककर पदयात्रा कर रहे एक समूह को रोक ही लिया और फिर उनसे लंबी चर्चाओं का दौर प्रारंभ हुआ।

जिनसे मेरा साक्षात्कार हो रहा था वह बैंक के सेवानिवृत्त अधिकारी थे और आयु लगभग 63 वर्ष। उन्होंने बताया कि वह नागपुर निवासी हैं और अपने मित्रों के साथ नर्मदा परिक्रमा पर निकले हैं। मेरा जिज्ञासु पत्रकार मन उन्हें कुरेदे जा रहा था और उन्होंने माँ नर्मदा की महिमा का जो बखान किया उसे सुनकर मैं अभिभूत हो गया।

यह सच है कि संसार में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ नदियों के नाम के पहले माँ शब्द लगाकर उन्हें पुकारा जाता है। हमारे धार्मिक ग्रंथों में गंगा को ज्ञान की, यमुना को भक्ति की, सरस्वती को विवेक, ब्रह्मपुत्र को तेज, गोदावरी को ऐश्वर्य, कृष्णा को कामना और नर्मदा नदी को वैराग्य की अधिष्ठात्री माना गया है और वह मानव जाति के इन उद्देश्यों के प्रतिष्ठान के लिये दुनिया में आई है।

पुराणों में वर्णन करते हुए कहा गया है कि नर्मदा सरितां वरा… अर्थात नर्मदा समस्त नदियों में प्रमुख व श्रेष्ठ है। इसी प्रकार रेवा तीरे तपस्कुयति, मरणं जान्हवी तटे… इसका अर्थ है कि तपस्या का उचित फल रेवा यानि नर्मदा के तट पर ही मिलता है।

इसी कारण मुनि, सिद्ध, योगी जन नर्मदा का किनारा ही चुनते हैं। नर्मदा परिक्रमा कर रहे श्रीधर काले जी बताते हैं कि भगवान शिव के पसीने की बूँद से उत्पन्न हुई माँ नर्मदा शिव पुत्री भी कहलाती है। माँ नर्मदा का हर कंकड़ भगवान शिव के रूप में ही पूजा जाता है और उसकी प्राण प्रतिष्ठा की भी जरूरत नहीं होती। और नर्मदा में प्रवाहित मनुष्य की अस्थियां भी पत्थर में तब्दील हो जाती है

श्रीधर जी की यह दूसरी नर्मदा परिक्रमा यात्रा है अपना अनुभव सुनाते हुए बताते हैं कि सतयुग से निरंतर प्रवाहित माँ नर्मदा युगों-युगों तक प्रवाहमान रहेगी और इनकी परिक्रमा दौरान आत्मिक व दैवीय अनुभूति होती है। परिक्रमा दौरान उद्गम से लेकर नर्मदा के समुद्र में संगम तक रास्ते में करीब 10 करोड़ तीर्थ स्थान है। परिक्रमा करने वालों का यह भी मानना है कि द्रोण पुत्र अस्वत्थामा आज भी नर्मदा परिक्रमा में लीन है और यात्रा दौरान वह कभी न कभी दिखाई देते हैं।

नर्मदा तट पर स्थित बड़वानी में पूजा रेडिमेड के नाम से दुकान संचालित करने वाले अजय परिहार विगत 15 वर्षों से नियमित नर्मदा स्नान करते हैं और उनका मानना है कि साल में एक दिन हिंदुस्तान की सारी नदियां नर्मदा स्नान को आती है।

माँ नर्मदा विश्व की अकेली ऐसी नदी है जिसकी विधिवत परिक्रमा या प्रदक्षिणा की जाती है। यह परिक्रमा नदी के दोनों तटों से की जाती है। एक ओर के तट की लंबाई 1312 किलोमीटर है श्रद्धालु अमरकंटक या औंकारेश्वर से यात्रा प्रारंभ करते हैं यह जहाँ से प्रारंभ होती है वहीं पर समाप्ति होती है। यात्रा प्रारंभ करते समय प्रतिष्ठित व्यक्तियों से प्रमाण-पत्र लेना होता है। पूर्व से पश्चिम की ओर बहने वाली नर्मदा विश्व की अकेली नदी है। ताप्ती भी इसी दिशा में बहती है परंतु वैज्ञानिक धारणा है कि वर्षों पूर्व ताप्ती भी नर्मदा की सहायक नदी ही थी।

समुद्र तल से 1051 मीटर ऊँचाई पर मैकल पर्वत के अमरकंटक स्थित कुंड से निकलने वाली नर्मदा कुल 1312 किलोमीटर की यात्रा कर गुजरात में खंभात की खाड़ी में जाकर मिलती है और इसका क्षेत्रफल 98496 वर्ग किलोमीटर है। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, गुजरात से गुजरने वाली नर्मदा अपनी यात्रा दौरान 1079 किलोमीटर की यात्रा तो मध्यप्रदेश की ही करती है।

3 वर्ष लगते हैं परिक्रमा में

नर्मदा परिक्रमा करने वाले यात्री प्रतिदिन सुबह नर्मदा में स्नान व पूजन करते हैं और परिक्रमा दौरान नदी के हमेशा दाहिनी ओर ही चलते हैं। औंकारेश्वर से प्रारंभ होने वाले यात्री बड़वानी होते हुए गुजरात पहुँचकर खाड़ी पार करके नदी के दूसरे तट से अमरकंटक जाकर पुन: औंकारेश्वर तक आकर यात्रा समाप्त करते हैं। नदी के एक ओर के तट की लंबाई 1312 किलोमीटर है अर्थात दोनों तट की यात्रा (1312+1312) 2624 किलोमीटर की होती है जिसे पूरा करने में 3 वर्ष, 3 माह और 13 दिन लगते हैं। मध्यप्रदेशवासी माँ नर्मदा के करुणामय व वात्सल्य स्वरूप को बहुत अच्छी तरह से जानते हैं।
जय माँ नर्मदा

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