उज्जैन, (अर्जुनसिंह चंदेल), अग्निपथ। पूर्व पार्षद गुड्डू कलीम की मौत को 48 घंटे से ज्यादा का समय गुजर चुका है पर इन 48 घंटों में मन मस्तिष्क में उसकी मौत को लेकर अनेक प्रश्न घुमड़-घुमड़ कर सामने खड़े हो रहे हैं।
वह कौनसी परिस्थितियां उसके परिवार में पैदा हो गयी होगी जिसमें उसकी अर्धांगिनी जिसने साथ रहने की, साथ जीने-मरने की कसमें खायी होंगी, उसके स्वयं के पुत्रों ने ही अपने पिता को मौत के घाट उतार दिया? ऐसा करते समय क्या उनका कलेजा नहीं कांपा होगा? क्या शैतान स्वयं संतानों के रूप में आकर खड़ा हो गया होगा? क्या उस पल उस घड़ी मौत के देवता यमराज स्वयं तांडव करने आये थे? यह हत्याकांड साधारण न होकर असाधारण है और पूरे समाज के सामने हत्या के पीछे के कारण यक्ष प्रश्न बनकर खड़े है।
शुरुआत करता हूँ अग्निपथ के सुधि पाठकों के मन में आ रहे इस प्रश्न के जवाब से कि मेरा क्या लेना-देना गुड्डू कलीम से? साथियों 24 वर्ष पीछे चलना होगा मेरे साथ। वर्ष 2000 में उज्जैन नगर पालिक निगम में पार्षद के चुनाव हुए थे तब मैं, गुड्डू कलीम, साराबहन आगरवाला, कुतुब फातेमी हम चारों निर्दलीय रूप से चुनाव जीतकर आये थे।
नगर निगम अध्यक्ष के निर्वाचन में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी प्रकाश चित्तौड़ा हम चारों के ही समर्थन से निगम अध्यक्ष की आसंदी पर काबिज हो पाये थे। हम चारों ही एकजुट थे। निगम अध्यक्ष के लिये होने वाले मतदान के दिन तक साराबहन को छोडक़र हम तीनों ही भूमिगत हो गये थे। उन 15-20 दिनों तक हम देश के अनेक स्थानों पर साथ-साथ थे तब से ही वह मेरा दोस्त बन गया था।
एक सामान्य मुस्लिम परिवार के वजीर खाँ के यहाँ सात संताने थी जिनमें तीन पुत्र और चार पुत्रियां थी। पुत्रों में बड़ा बेटा रशीद, सलीम और फिर कलीम जिसे गुड्डू कहते थे इसलिये वह ‘गुड्डू कलीम’ कहलाया। वजीर खाँ की बडऩगर रोड पर धरमबड़ला पर स्थित 35-36 बीघा जमीन थी और ‘खडग़सिंह’ नाम के आदमी की जमीन इनकी जमीन से लगी हुयी थी।
आये दिन छोटी-छोटी बातों को लेकर दोनों परिवारों के बीच विवाद होता रहता था। एक दिन ‘खडग़सिंह’ के पुत्र ने दो बदमाशों के साथ मिलकर गुड्डू कलीम के बड़े भाई ‘सलीम’ की हत्या कर दी। सलीम ने हिंदु लडक़ी से शादी की थी जो नाथ सम्प्रदाय से ताल्लुक रखती थी। ऐसा कहा जाता है कि सलीम की हत्या में खडग़सिंह के लडक़े के साथ जो दो और लोग शामिल थे उनके नाम प्रथम सूचना रिपोर्ट में नहीं लिखाये गये और उनसे यह वायदा लिया गया कि नाम न लिखाने के एवज में वह खडग़सिंह की हत्या में साथ देंगे।
सलीम की मौत के 7-8 वर्षों बाद गुड्डू कलीम के सबसे बड़े भाई रशीद ने छत्रीचौक पर साथी शक्कन के साथ मिलकर अपने छोटे भाई सलीम की हत्या का प्रतिशोध लेने के लिये खडग़सिंह की हत्या कर दी। जिसमें आत्मसमर्पण के बाद रशीद को हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा हो गयी और सजा के दौरान ही उनका इंतकाल हो गया।
अपने से बड़े दोनों भाइयों की मौत के बाद परिवार की पूरी जवाबदारी ‘गुड्डू कलीम’ पर आ गयी। खडग़सिंह की मौत के बाद ऐसे ही शहर में रूतबा बढ़ गया था। हरिफाटक ब्रिज के पास बोहरा समाज के व्यापारियों की जमीन पर गुड्डू कलीम के पिताजी वजीर खाँ हाली का काम करते थे। गुड्डू ने बोहराओं की जमीन पर कब्जा कर लिया। चूँकि अपराध की दुनिया में भी कदम रख चुका था इसलिये येन-केन-प्रकारेण मुल्लाओं से कागजातों पर दस्तखत करवाने में कोई परेशानी नहीं आयी। जमीनों पर कब्जा होते ही गुड्डू कलीम ने अपने पिता वजीर खाँ के नाम से अवैध कालोनी काट दी जिसका नाम रखा ‘वजीर पार्क कॉलोनी’। गुड्डू कैसे बना अरबपति?
अगले अंक में
गुड्डू कलीम हत्याकांड की कहानी – 2 : अरबपति बनने के पहले ‘गुड्डू’ कैसे बन गया अपराधी