आज से दस दिवसीय गणेशोत्सव की शुरुआत हो रही है। भाद्रपद मास की चतुर्थी से प्रारंभ होने वाले इस पर्व का समापन अनंत चतुर्दशी पर होगा। गणेशोत्सव का आयोजन प्रचीनकाल से होता चला आ रहा है। हमारा इतिहास बताता है कि सातवाहन, राष्ट्रकूट, चालुक्य वंश के शासनकाल दौरान भी इसे मनाया जाता था। रिद्धी-सिद्धी के दाता, भालचन्द्र, बुद्धिनाथ, धूम्रवर्ण, एकासर, एकदंत, गजकर्ज, गजानन, गौरीसुत, लंबकर्ण, मंगलमूर्ति, भूपति ऐसे अनेक नामों से पुकारे जाने वाले प्रथम पूज्य गणेशजी की स्थापना की शुरुआत राष्ट्रधर्म और संस्कृति से जोडक़र मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने की थी।
शिवाजी के बाद मराठा शासकों ने भी इसे जारी रखा तदउपरांत पेशवाओं के समय भी यह जारी रहा। चूँकि पेशवाओं ने गणेशजी को कुलदेवता के रूप में पूजा इस कारण गणेशजी को राष्ट्रदेव का दर्जा प्राप्त हो गया। सन् 1892 तक ब्रिटिश हुकुमत में गणेश उत्सव केवल हिंदु घरों तक ही था। 1857 की क्रांति के बाद अँग्रेजों ने 1894 में कठोर नियम बना दिये। भारतीयों के एकत्रीकरण से घबराकर धारा 144 को जन्म दिया जो देश की आजादी के 75 वर्षों बाद भी जस की तस है जिसके अंतर्गत सार्वजनिक स्थानों पर 5 या 5 से अधिक लोग एकत्र नहीं हो सकते। अँग्रेजों ने धारा 144 का पालन ना करने पर कोड़े बरसाने और हाथों से नाखूनों के खींचने तक की सजा दी। अँग्रेजों के भय को खत्म करने के लिये तथा धारा 144 का विरोध करने के लिये बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को सार्वजनिक रूप से मनाना प्रारंभ किया। सन् 1894 में पुणे के शनिवार वाड़ा में गणेश उत्सव आरंभ किया सार्वजनिक गणेश उत्सव में हजारों लोगों की भीड़ जुटने लगी।
अँग्रेज धारा 144 का कानून बनाते समय एक गच्चा खा गये थे कानून में राजनैतिक रूप से या राजनैतिक दृष्टिकोण से एकत्र हुयी भीड़ पर कानून का उपयोग कर सकते धार्मिक उत्सव मनाने के लिये एकत्र हुयी भीड़ पर धारा 144 का उल्लंघन का कोई प्रावधान नहीं था इसी का लाभ उठाते हुए बाल गंगाधर तिलक ने धार्मिक उत्सव के सहारे लोगों की भीड़ जुटायी।
1894 में 20 से 30 अक्टूंबर तक चले दस दिवसीय गणेश उत्सव में पहले दिन प्रसिद्ध क्रांतिकारी विपिनचंद पाल, दूसरे दिन बाल गंगाधर तिलक, तीसरे दिन चापेकर बंधुओं ने अपने ओजस्वी भाषणों से भारतीयों को आंदोलित किया। सन् 1895 में 11 जगह 1896 में 31 स्थानों पर 1897 में 100 स्थानों पर गणेश उत्सव मनाया जाने लगा और फिर तो पूरे देश में कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक गणेश उत्सवों का आयोजन किया जाने लगा। सन् 1904 में लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया कि गणेश उत्सव का मुख्य उद्देश्य आजादी हासिल करना है।
अत: यह स्वीकार किया जाना चाहिये कि भारत को मिली आजादी में गणेश जी और गणेश उत्सवों का भी योगदान रहा है।
देश आजाद हो गया है गणेश जी से भी माँगने की प्राथमिकताएँ बदल गयी है तब अँग्रेजों से आजादी मांगी थी अब सारी दुनिया कोरोना के आतंक में जी रही है, लाखों लोगों की मौत की नींद सुला चुके कोरोना से मुक्ति ही पहली प्राथमिकता है। हे लम्बोदर! अब तू ही कुछ चमत्कार दिखा, पूरे देश तुने अगाध श्रद्धा के साथ तुझे घर-घर विराजित करेगा इस दिनों तक अनवरत तेरा पूजा-अर्चन होगा हमें पूरी उम्मीद है कि तू हमें निराश नहीं करेगा और इस ब्राह्मण को कोरोना मुक्त करेगा।
हे लम्बकर्ण! यदि तू स्थानीय प्राथमिकता जानना चाहेगा तो वह भी मैं तुझे बताना चाहूँगा उज्जैन शहर की प्यास बुझाने वाले गंभीर डेम को तू इन दस दिनों में लबालब भर दे तेरा यह ऋण मैं कभी नहीं भूलूँगा। बाकी मैं तुझसे कुछ नहीं माँग रहा हूँ शेष माँगें अगले साल रखूँगा। मुझे उम्मीद है कि हे भूपति! तुम हमें निराश नहीं करोगे।
जय गजानन