महेश गणित में कमजोर माना जाता था, दरअसल कमजोर भी नहीं था घर पर तो वो सारी प्रॉब्लम्स को अच्छे से सॉल्व करता था लेकिन एक्जाम रूम में पहुंचते ही उसका गणित कमजोर हो जाता था। नतीजा दिखता था मार्क्सशीट में और मार्क्सशीट के हिसाब से महेश का गणित वाकई कमजोर था। ऐसा क्यों था ये किसी को समझ नहीं आता था। ऐसे में मदद आई स्कूल के टीचर की तरफ से। स्कूल के टीचर ने बताया कि “महेश को कभी ये मत कहो कि उसका गणित कमजोर है बल्कि ये कहो कि उसका गणित अच्छा है”। मां-बाप को विश्वास नहीं हुआ पर उन्होंने किया। उन्होंने रोज मौका ढूंढकर राजेश को ये कहना शुरू किया कि उसका गणित अच्छा है और नतीजा मॉर्क्स में भी दिखा।
क्या कोई जादू हुआ? नहीं, ये सारा खेल सेल्फ इमेज का है। मनोविज्ञान कहता है कि जब हम बच्चों को डांटते हैं भला-बुरा कहते हैं तो बच्चे अपनी निगेटिव इमेज बना लेते हैं और उसका असर उनके जीवन पर दिखने लगता है। इसलिए आपको कुछ बातें बच्चों को रोज बोलनी चाहिए
जैसे आई लव यू
ये मैजिकल वर्ड बच्चों को रोज बोलेंगे तो उन्हें हमेशा वांटेड फील होता रहेगा। उनके मन में ये धारणा भी पक्की तौर पर बैठ जाएगी कि उनके मम्मी-पापा उनके साथ हमेशा हैं चाहे जो परिस्थिति हो। इस धारणा को हल्के में मत लीजिएगा। अक्सर बच्चों के मन में ये धारणा कहीं गहरे बैठी होती है कि मां-बाप उन्हें प्यार नहीं करते। खासकर बच्चे के भाई बहन हों तो और भी पक्के तौर पर। ऐसे में आपका रोज प्यार जताना उनकी जिंदगी भर की कमाई बन सकता है।
वॉव, तुम बहुत अच्छे हो
इसकी जगह आप कोई भी शब्द रख लें, जैसे तुम गणित में अच्छे हो, तुम बहुत मेहनती हो, तुम बहुत तेज लर्नर हो। कृपया ध्यान दें किसी हालात में नकारात्मक शब्द इस्तेमाल ना करें। रोज पॉजीटिव शब्द सुनकर बच्चे के अंतर्मन में उसी तरह के बदलाव आते हैं।
अच्छा, फिर क्या हुआ…
‘हाऊ टू टॉक सो किड विल लिसन एंड लिसन सो किड विक टॉक’ किताब में लेखक एडेल फेबर’ और ‘एलिना मजलिस’ ने अभिभावकों के लिए खास सलाह दी हैं। उनका कहना है कि ‘हमारी बड़ी समस्या है कि हम बच्चों की सुनते नहीं। अगर सुनते हैं तो बच्चों को लगता नहीं कि हम उनकी सुनते हैं। इसी का इलाज हैं ऐसे शब्द इस्तेमाल करना। हम्म… ओके, फिर क्या हुआ, अच्छा ऐसा हुआ था। इन शब्दों से बच्चों को लगता है कि उनकी बात सुनी जा रही है। वो और दिलचस्पी लेकर अपनी बात कहते हैं। ‘
सॉरी एंड थैंक्यू
सॉरी और थैंक्यू जैसे शब्द सिर्फ बड़ों के लिए ही मायने नहीं रखते बल्कि बच्चों के लिए भी मायने रखते हैं। वो आप को देखकर ही सीख रहे होते हैं। जब आप सॉरी कहते हैं तो बच्चे सीखते हैं कि गलती पर माफी मांगकर आगे बढ़ना चाहिए। इसी तरह काम करने के बदले थैंक्यू कहने से आप बच्चे को अच्छे संस्कार सिखा रहे होते हैं, जो उनके जीवन में काम आएगा
इस पर तुम्हारा क्या कहना है…
मां-बाप मानते हैं कि बच्चों के पास ज्यादा अनुभव नहीं है इसलिए वो गलत फैसले लेंगे। लेकिन इसी सोच से बच्चों का बड़ा नुकसान होता है। वो फैसला लेना नहीं सीख पाते। इसलिए आप हर फैसले में उन्हें भागीदार बनाइए। बच्चों की राय लीजिए। हो सकता है कि उनकी राय मानी ना जाए तो बच्चों को साथ ही ये बताइए कि उनकी राय क्यों मानी नहीं गई। ऐसे करके आप उन्हें अपने अनुभव में भागीदार बनाते हैं, जाहिर तौर पर आप उन्हें बड़ा करने में मदद भी करते हैं।