उत्तराखंड के रास्ते चलो कैलाश
‘मानसरोवर’ की यात्रा आने वाले वर्षों में अब पहले की तुलना में सुगम और आसान होने वाली है। बिना नेपाल और चीन जाये ही सीधे मानसरोवर पहुँचा जा सकेगा। मानसरोवर अर्थात मन का सरोवर। माना जाता है कि माता पार्वती आज भी इसी सरोवर में स्नान करने आती हैं।
320 वर्ग किलोमीटर में फैली मानसरोवर झील की उत्तर दिशा में कैलाश पर्वत है तथा पश्चिम दिशा में राक्षस ताल है। भगवान शंकर का निवास स्थल कैलाश पर्वत मानसरोवर झील से मात्र 40 किलोमीटर दूर है जो कि दुनिया के चार प्रमुख धर्मों हिंदु, जैन, बौद्ध एवं सिखों की आस्था का केन्द्र है।
मानसरोवर के पास ही कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के करकमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्व की चोटी पर गिरती है, जहाँ प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में समेटकर धरती पर निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। कैलाश पर विराजित भगवान शंकर के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्युलोक है। कैलाश पर्वत की बाहरी परिधि 52 किलोमीटर है।
कैलाश पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है जो 100 से अधिक छोटे पिरामिडों का केन्द्र है। समुद्र सतह से 22 हजार 68 फुट ऊँचा यह पर्वत तिब्बत में स्थित है। और तिब्बत चीन के अधीन है इसकी चारों दिशाओं से ब्रह्मपुत्र, सिंधु, सतलज और करनाली नदियों का उद्गम हुआ है। इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की नदियां प्रवाहमान है। जैन धर्मावलंबियों का मानना है कि आदिनाथ ऋषभदेव का यह निर्वाण स्थल है। ऋषभदेव जी ने 8 पग में कैलाश पर्वत की यात्रा पूरी कर ली थी।
सिख धर्म को मानने वालों का कहना है कि गुरुनानक जी ने कुछ दिन यहाँ रूककर तपस्या की थी। बौद्ध धर्म अनुयायी मानते हैं कि भगवान बुद्ध की माता जी ने यहाँ की यात्रा की थी। माना जाता है कि कैलाश पर्वत की तलहटी में कल्पवृक्ष है जिसके फलों में चिकित्सकीय गुण मौजूद है जो सभी प्रकार के शरीरिक व मानसिक रोगों का उपचार करने में सक्षम है। हिंदुओं के आराध्य शिव का स्थान होने के साथ ही यहाँ माता सती के शरीर का दायॉ हाथ भी गिर गया था जो पाषाण शिला के रूप में आज भी मौजूद है जिसे शक्तिपीठ कहा जाता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार कैलाश पर्वत धरती का केन्द्र बिंदु है जिसके एक ओर उत्तरी धुव्र दूसरी ओर दक्षिणी धुव्र है। वैज्ञानिकों का मानना है कि 10 करोड़ वर्ष पहले भारतीय उपमहाद्वीप के चारों ओर समुद्र था। एशिया के और समुद्र के टकराव के फलस्वरूप हिमालय का निर्माण हुआ। यह स्थान ‘एक्सिस मुंडी’ अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय व भौगोलिक धुव्र का केन्द्र है। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक ऐसा बिंदु है जहां दसों दिशाएँ मिल जाती है।
कहा जाता है कि ‘एक्सिस मुंडी’ वह स्थान है जहाँ अलौलिक शक्ति का प्रवाह होता रहता है और इन शक्तियों के साथ सम्पर्क स्थापित कर सकते हैं। कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुयी दिखाई देती हैं। माना जाता है कि यहाँ हिम मानव और कस्तूरी मृग भी दिखायी देते हैं।
पहाड़ों से घिरी मानसरोवर झील पुराणों में क्षीरसागर के नाम से वर्णित है, इसी में शेष शैय्या पर विष्णु व लक्ष्मी विराजित होकर संसार को संचालित कर रहे हैं। 17 हजार फुट की ऊँचाई पर स्थित 300 फुट गहरे मीठे पानी की झील मानसरोवर की उत्पत्ति भागीरथ की तपस्या से भगवान शिव के प्रसन्न होने पर हुयी थी।
पुराणों के अनुसार भगवान शिव द्वारा प्रकट किये गये जल के वेग से जो झील बनी उसी का नाम मानसरोवर है। ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति मानसरोवर झील में डुबकी लगा लेता है वह सीधे रूद्रलोक को प्राप्त कर सकता है। महाराज मान्धाता द्वारा खोजी गयी यह झील की जो भी श्रद्धालु परिक्रमा करता है उसे इस नितांत निर्जन स्थान पर एरोप्लेन उडऩे जैसे ध्वनि सुनायी देती है लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज डमरू या ऊँ की ध्वनि जैसी होती है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ध्वनि बर्फ के पिघलने की एवं प्रकाश और ध्वनि के बीच इस तरह का समागम होता है उस कारण उत्पन्न होती है।
भारत की केन्द्रीय सरकार सिर पर एक बहुत बड़ा सेहरा बाँधने वाला है। दिसंबर 2023 तक भारतीय नागरिक चीन या नेपाल से गुजरे बिना कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर सकेंगे। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से मानसरोवर के लिये नया रास्ता बनाया जा रहा है जो सीधे मानसरोवर जायेगा।
शून्य से भी 5 डिग्री सेल्सियस कम तापमान में फाइटर जेट और हेलीकॉप्टर के माध्यम सडक़ बनाने में उपयोग आने वाली मशीनें और संसाधन पहुँचाये गये हैं। अभी नेपाल और चीन के रास्ते मानसरोवर यात्रा में 15-20 दिन लगते हैं।
इस नये मार्ग को 2005 में 80.76 करोड़ रुपये लागत का मंजूरी दी गयी थी और सन् 2018 में 439.40 करोड़ रुपये के साथ संशोधित किया गया है।