– अर्जुन सिंह चंदेल
मध्यप्रदेश में (2003-2023) 20 वर्षों का वनवास भोग चुकी 138 वर्ष पुरानी काँग्रेस को वर्ष 2018 के चुनावों में प्रदेश के 7 करोड़ से अधिक नागरिकों ने सत्ता के सिंहासन पर बैठा दिया था। परंतु अपनी हठधर्मिता और गुटबाजी के चलते ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा के जुनून ने काँग्रेस पार्टी को सत्ता से हाथ धोकर वापस जमीन पर आना पड़ा और भारतीय जनता पार्टी ऐन-केन-प्रकारेण सत्ता पर काबिज होने में सफल रही। कमलनाथ जी के जिद्दीपन और अडिय़ल रूख के कारण प्रदेशवासियों के भावनाओं पर तुषारापात हुआ। 5 वर्षों का समय लगभग बीत गया है। चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। भाजपा और काँग्रेस दोनों ही ओर के राजनैतिक योद्धा मैदान में तीर-तरकश के साथ उतर चुके हैं तो कुछ उतरने की तैयारी में है।
कांग्रेस की ओर से कमलनाथ तो भारतीय जनता पार्टी की ओर से शिवराज सिंह चिर-परिचित सेनापति आमने-सामने हैं। कमलनाथ जी का चेहरा जहाँ काँग्रेस की मजबूरी है वहीं भाजपा चेहरा बदलने का समय खो चुकी है। अब चुनावी रण इन दोनों योद्धाओं के बीच होना ही तय लग रहा है। यदि बात उज्जैन जिले की सातों सीट की करें तो भाजपा के तीन विधायक उज्जैन उत्तर से पारस जैन, दक्षिण से मोहन यादव और महिदपुर से बहादुर सिंह चौहान हैं।
काँग्रेस के पास तराना से महेश परमार, घट्टिया से रामलाल मालवीय, नागदा से दिलीप गुर्जर और बडऩगर से मुरली मोरवाल को मिलाकर चार विधायक हैं। आज हम बात कर लें दक्षिण विधानसभा की जो कि भारतीय जनता पार्टी की परंपरागत सीट बन चुकी है। काँग्रेस की काँग्रेस को ही निपटाओं समिति का यह मध्यप्रदेश विधानसभा की 230 सीटों में सबसे बड़ा उदाहरण है। कमल-काँग्रेस उत्पत्ति इसी विधानसभा से हुई थी।
इस विधानसभा सीट का इतिहास बताता है कि यहाँ से 10 साल विधायक रहे महावीर प्रसाद जी वशिष्ठ ने किसी अन्य को आगे बढऩे ही नहीं दिया। एक बार दक्षिण विधानसभा सीट से निर्यात निगम के पूर्व अध्यक्ष मनोहर बैरागी को काँग्रेस ने अपना प्रत्याशी बना दिया यह बात वशिष्ठ जी को अखर गयी और भाजपा से हाथ मिलाकर कमल-काँग्रेस को जन्म दिया। दक्षिण विधानसभा के पूरे ग्रामीण क्षेत्रों में काँग्रेस को हराकर बीजेपी को विजयी बनाने की अपील की गयी जिसका परिणाम यह रहा है कि मनोहर बैरागी चुनाव हार गये और यह दक्षिण विधानसभा सीट काँग्रेस के लिये अभिशापग्रस्त हो गयी।
इस विधानसभा में यह कमल-काँग्रेस का सिलसिला चलता रहा जो आज तक बदस्तूर जारी है। धुरंधर काँग्रेसी महावीर प्रसाद वशिष्ठ के बेटे राजेन्द्र वशिष्ठ दो बार यहां से प्रत्याशी रहे एक बार काँग्रेस पार्टी की ओर से और एक बार बागी के रूप में, दोनों ही बार उन्हें पराजय का मुँह देखना पड़ा। पूर्व काँग्रेसी नेता जयसिंह दरबार भी दो बार इस विधानसभा से चुनाव लड़े। एक बार काँग्रेस के चुनाव चिन्ह पर और एक बगावत करके दोनों ही बार पराजित हुए।
उत्तर के काँग्रेसी नेता और पूर्व छात्र नेता योगेश शर्मा भी दक्षिण विधानसभा से काँग्रेस प्रत्याशी रहे परंतु वह भी कमल-काँग्रेस के हाथों परास्त हुए। चूँकि इस बार मालवा क्षेत्र की कमान दिग्विजयसिंह जी के बेटे विधायक जयवर्धनसिंह के हाथों में है और वह काँग्रेस को वापस सत्ता में लाने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे हैं।
दिग्विजयसिंह और वशिष्ठ परिवार का 30 वर्षों से अधिक का संबंध है। राजनीति के अलावा व्यवसायिक भागीदारी की भी चर्चाएं हैं। इन्हीं पुराने संबंधों के कारण जयवर्धन सिंह काँग्रेसियों के भारी विरोध के बावजूद भी राजेन्द्र वशिष्ठ को दक्षिण से काँग्रेस उम्मीदवार बनाने का मन बना चुके हैं। पर शायद उनका यह निर्णय गलत साबित हो सकता है काँग्रेसियों की नाराजगी फिर एक बार कमल-काँग्रेस को मजबूत करेगी और सशक्त भाजपा के सामने तीसरी बार भी राजेन्द्र वशिष्ठ सफल नहीं हो जायेंगे।