उज्जैन (अंजली श्रीवास्तव)। अगर बात महिलाओं की कही जाए तो वह अकेली एक ऐसी कलाकार है जो अपने हर किरदार बखूबी निभाती चली आ रही है। महिलाएं परिवार, समाज की ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया की आधारशिला होती है। घर हो, कोई संस्था हो, देश हो या किसी भी पद पर हो महिला हमेशा एक मजबूत स्तंभ की तरह खडी़ रहती है। आज के समय में किसी भी देश को विकसित तभी कहा जाता है जब वहां की महिलाएं सशक्त, निडर, स्वतंत्र, सुरक्षित, शिक्षित, आत्मनिर्भर एवं भेदभाव की सोच से कोसो दूर हो। आज महिला दिवस के उपलक्ष पर हमने अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़ी महिलाएं जिन्होंने अपने काम से समाज में नई प्रेरणा प्रस्तुत की है, उनसे महिलाओं की स्थिति से जुड़े कुछ प्रमुख प्रश्न जैसे बीते दस वर्षों में महिलाओं की स्थिति में अंतर, आज के समय में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती व भविष्य में महिलाओं को किन सुविधाओं की जरूरत है। इन प्रश्नों के माध्यम से देश में महिलाओं की स्थिति से रूबरू कराने का छोटा-सा प्रयास कर रहे हैं।
कमजोरी को ताकत बनाना चुनौतीः पूर्णिमा सिंघी
उज्जैन की तेजतर्रार तहसीलदार पूर्णिमा सिंघी बताती हे कि बीते दस वर्षो में महिलाओं का आत्म विश्वास काफी बढ़ा है। शारीरिक रूप से कठिन कार्यों जैसे आर्मी, एयरफोर्स, खेल में उत्साहपूर्वक भाग लिया जा रहा है। आज के समय में सामाजिक सोच में बदलाव के बिना समाज में अपनी पहचान बनाना सबसे बड़ी चुनौती है।अपनी कमजोरी को ताकत बनाना चुनौती है। आने वाले समय में महिलाओं को निर्भीकता का वातावरण मिले। स्वाभिमान के साथ अपनी जिंदगी जीने के फैसले खुद लेने की स्वतंत्रता मिले ।
हर क्षेत्र में अग्रणी भूमिकाः रेखा पटेल
एडवोकेट रेखा पटेल ने बताया है कि बीते दस वर्षों में महिलाओं की स्थिति में सुधार आया है। पहले महिलाओं को घर से निकलने पर पाबंदी थी उन्हें दूर रखा जाता था, लेकिन आज के जमाने में महिलाएं आत्मनिर्भर बन रही हैं। डॉटर इंजीनयर वकील सभी क्षेत्र मे अपनी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं। आज के समय में इस पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं के लिए सबसे बड़ी चुनौती उनके सम्मान की सुरक्षा की है। आने वाले समय में महिलाओं के लिए संपूर्ण सुरक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए, उन्हें आजादी से काम करने का अवसर मुहैया कराना चाहिए।
हर जगह हासिल की फतेहः शैनन जैन
इंटीरियर डिज़ाइनर शैनन जैन ने बताया कि बीते दशक में महिलाओ ने अपना एक अलग ही परचम लहराया है। जिस देश मे औरत को देवी के रूप में पूजा जाता हैं। घरों से निकल कर हर एक मैदान में चाहे फिर वो राजनीति हो, क्रिकेट हो या सुरक्षा दल ही यों न हो। महिलाओं ने हर जगह फ़तेह हासिल की है। महिलाएं वैसे तो हर मोड़ पर कदम से कदम मिला कर चल रही हैं लेकिन आज भी कई चुनौतियाँ है। अपनी पसंद के कपड़े पहनने पर कई कुदृष्टियों का शिकार होना या फिर ऊंचाइयों को छूने पर गलत निगाहों से देखा जाना। पढ़ाई हुई नहीं कि शादी का प्रेशर तले अपने सपनों को दफऩ कर देना। आने वाले समय मे महिलाओं को वो सभी अधिकार को जो पुरुष को दिए जाते है। हमें पुरुष से जीतना नहीं है न उन्हें पीछे छोडऩा हैं न नीचा दिखाना हैं, बस कदम से कदम मिला कर चलना हैं। महिला है तो दया की या गिरी हुई नजऱों से नहीं, बल्कि सामान्य व्यक्ति की तरह समान एवं गर्व की नजऱों से देखना चाहिए।
आज भी कार्यक्षेत्र में कई चुनौतियांः किरण जुनेजा
मंडल अभिभाषक संघ की पूर्व अध्यक्ष वरिष्ठ अभिभाषक किरण जुनेजा ने बताया कि साक्षरता बढऩे के कारण पिछले दस वर्षों में महिलाएं सभी क्षेत्रों में काम करने लगी है, यहां तक कि फाइटर प्लेन भी उड़ा रही हैं किंतु अभी भी महिलाओं को कार्यक्षेत्र में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। वर्चस्व को लेकर कई बार कटु स्थिति उत्पन्न हो जाती है। महिलाओं की सबसे बड़ी चुनौती आज भी कार्य स्थल एवं परिवार में सामंजस्य बैठाना है हम चाहते है कि महिलाएं अपने कार्य क्षेत्र में स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें, उन्हें सुरक्षित वातवरण मिले।
घर और बाहर मिलकर काम करें स्त्री-पुरुषः हिना तिवारी
विक्रम विश्वविद्यालय में जनसंचार एवं पत्रकारिता विभाग में पत्रकारों की नई पीढ़ी तैयार करने वाली प्रोफेसर हिना तिवारी कहती है कि पहले महिलाएं घर से निकल नहीं पाती थी पिछले दस वर्षों में महिलाएं घर से बाहर आने आने लगी है। अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों पर खुलकर बात करने लगी है। महिलाओं की सुरक्षा को लेकर महिलाएं घर से बाहर तो निकलना चाहती हैं पर रूढि़वादी लोग उन्हें बाहर नहीं निकलने देते। संकीर्ण सोच के लोगों के कारण महिलाओं को बाहर काम करने में दिक्कत होती है। आने वाले समय में महिलाओं को पूर्ण रूप से सुरक्षा प्राप्त होना चाहिए। दूसरा घर के काम सिर्फ महिलाएं करती है इस सोच को खत्म करना चाहिए। पुरुष एवं महिला दोनों को ही घर और बाहर बराबर रूप से कार्य करना चाहिए।
अपनी लड़ाई खुद लड़ेंः पल्ल्वी शुक्ला
चिमनगंज क्षेत्र की सीएसपी पल्लवी शुला का कहना है कि पिछले दस वर्षों में महिलाओं की स्थिति में बहुत अंतर आया है। महिलाएं पहले डरी-सहमी घर में बैठी रहती थी पर आज महिलाएं हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही है। अगर चुनौती की बात की जाए तो खुद का परिवार ही उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। परिवार और समाज में सामंजस्य बना कर रखना बहुत मुश्किल है। महिलाओं को अपने परिवार और बाहरी कार्य में संतुलन बनाकर रखना चाहिए जिससे उसकी तरक्की में कभी बाधा ना आ सके। आने वाले समय में महिलाओं खुद इतनी जागरूक हो कि वह अपने अधिकारों की मांग खुद कर सके। वह अपने लिए खुद लड़ाई लड़े और अपनी पसंद के अनुसार क्षेत्र में अपना भविष्य बनाए।
उनके इस निर्णय का सम्मान करे समाजः प्रेमलता चुटैल
विक्रम विश्वविद्यालय हिंदी विभाग की प्रोफेसर प्रेमलता चुटैल ने बताया है कि बीते दस वर्षों में सबसे बड़ा बदलाव यह आया है कि महिलाओं ने लाख विरोध होने के बावजूद भी कई गतिरोध तोड़ते हुए समाज में अपना स्थान प्राप्त किया है। अब अपवाद छोड़ दिया जाए तो कार्य क्षेत्र में महिलाओं को लेकर पुरुषों का नजरिया भी बदला है व परिवार के द्वारा भी उन्हें समर्थन मिलने लगा है। चुनौतियों की बात करें तो महिलाओं पर अत्याचार भी बड़ा है आज की समय पर महिलाओं को सामाजिक, शारीरिक व आत्म समान की असुरक्षाओं का भाव बढऩे लगा है। ग्रामीण महिलाओं को पूर्ण रूप से शिक्षा नही मिल पाती है। विधवा महिलाओं को भी पूर्ण सम्मान प्राप्त नहीं होता। साथ ही आज के समय में कुछ आत्मनिर्भर महिलाएं एकांकी जीवन जीना चाहती है जिन्हें इस समाज के द्वारा सम्मान नहीं मिलता समाज को उनके इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए।
10 साल में काफी बदले हैं हालातः अलका सोनकर
सेंट्रल जेल भैरवगढ़ की अधीक्षक अलका सोनकर ने बताया कि 10 वर्षों में महिलाओं की स्थिति में काफी अंतर आया है। महिलाएं आज समाज के हर क्षेत्र में प्रतिनिधित्व कर रही हैं। घर के साथ अपने काम को बेहतर रूप से कर रही है। चुनौती की बात की जाए तो अपने मूल दायित्व का पालन करते हुए समाज की मुख्यधारा को देखते हुए चलना महिला के लिए बड़ी चुनौती है आने वाले समय में महिलाओं को ऐसा वातावरण मिलना जिसमें वे कभी भी अपने घर से बाहर आ सकें।