महंगाई डायन सुरसा की तरह मुंह बाये जा रही है और हम नतमस्तक होकर चरणवंदन किये जा रहे हैं। सरकार ने एकबार फिर रसोई गैस 25 रुपए महंगी कर दी है। जनवरी में 754 रुपए (हालांकि यह भी बहुत हैं) में मिलने वाला गैस सिलेंडर सितंबर यानी 9 महीने में ही 190 रुपए बढक़र अब 944.50 रुपए में मिलेगा। पिछले पंद्रह दिनों में ही भाव 50 रुपए बढ़ गये हैं।
जो भाजपा कांग्रेस शासन में 400 रुपए का गैस सिलेंडर बर्दाश्त नहीं करती थी, 60 रुपए प्रति लीटर का पेट्रोल भाव होने पर पूरे देश में आंदोलन छेड़ देती थी, उसी भाजपा के राज में मात्र छह साल में ही हर चीज के भाव लगभग डबल हो गए हैं। लोगों की कमाई नहीं बढ़ी और महंगाई आसमान छू रही है। महंगाई और कमाई में जो तालमेल नहीं बैठा पा रहा है वो परिवार सहित जान देने को उतारू है।
दूसरी ओर सरकार अच्छे दिन का बोल-वचन कर बाजार की तरक्की और महंगाई काबू में आने का दावा कर रही है। हालांकि यह दावे जमीनी सच्चाई से कोसों दूूर है। इस महंगाई के बढ़ते स्वरूप के लिए कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं। जो लोग अफगानिस्तान के हालातों का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर लिखते हैं-भले ही पेट्रोल 200 रुपए लीटर हो जाये, वोट तो मोदी को ही देंगे। उन्हें सिर्फ एक ही सलाह नतमस्तक होकर चरणवंदना मत कीजिये। दिमाग का भी उपयोग कीजिये।