एक शताब्दी में सिर्फ एक या दो बार बनते हैं इस प्रकार के योग
उज्जैन, अग्निपथ। पंचांग की गणना के अनुसार फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि मंगलवार 1 मार्च को धनिष्ठा नक्षत्र शिवयोग और चतुष्पद करण तथा कुंभ राशि के चंद्रमा की साक्षी में महाशिवरात्रि का महापर्व काल आया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित अमर डिब्बावाला ने बताया कि ग्रह गोचर की मान्यता के आधार पर देखें तो वार, तिथि, योग, नक्षत्र, करण तथा ग्रहों के संचरण का यह समय विशिष्ट अनुक्रम से बन रहा है। क्योंकि शास्त्रीय गणना के आधार पर ग्रहों का अनुक्रम इस प्रकार से एक शताब्दी में एक या दो बार ही बन पाता है।
सूर्य, चंद्र, गुरू का त्रिग्रही योग
महापर्व के दौरान कुंभ राशि पर सूर्य, चंद्र, बृहस्पति का त्रिग्रही योग बनेगा। हालांकि यह योग सवा 2 दिन का रहेगा। किंतु इस सवा 2 दिन के योग में चंद्र सूर्य का विशेष प्रभाव गुरु के साथ संयुक्त होगा।
सूर्य के केंद्र योग से प्रभावशाली
ग्रह गोचर में अलग-अलग प्रकार का सहयोग बनता रहता है। इस आधार पर देखें तो सूर्य का केंद्र योग बनेगा। जिसके माध्यम से महापर्व काल पर किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठान का विशेष फल मिलेगा।
चतुर्ग्रही योग का भी प्रभाव
ग्रहों के परिभ्रमण की बात करें तो मकर राशि पर मंगल, बुध, शनि, शुक्र चारों ग्रहों का संयुक्त अनुक्रम रहेगा। जिसका प्रभाव अलग-अलग प्रकार से देखने में आएगा। हालांकि शिव साधना के लिए इस प्रकार के ग्रह योग विशेष लाभकारी साबित होते हैं।
पंचक से 5 गुना शुभ फल मिलेगा
नक्षत्र मेंखला की गणना के आधार पर देखें तो कोई भी पर्व या त्योहार का अपना विशेष प्रभाव रहता है। क्योंकि महा शिवरात्रि महापर्व काल पर धनिष्ठा नक्षत्र के होने से यह विशेष फलदाई रहेगा या लाभकारी रहेगा। क्योंकि धनिष्ठा नक्षत्र के साथ शिवयोग का होना अपने आप में विशेष महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह नक्षत्र पंचक में आने वाले 5 नक्षत्रों में पहला नक्षत्र है।
जिसके साथ शिवयोग का संयुक्त अनुक्रम बनता है। शास्त्रीय मान्यता से देखें तो इस प्रकार का नक्षत्र व योग विशेष साधना के लिए सफलता देने वाला माना जाता है। इस दृष्टि से यह 5 गुना शुभ फल प्रदान करने वाला रहेगा।