महाकालेश्वर मंदिर में धनतेरस 23 को: पुरोहित समिति करेगी महाकाल को चांदी का सिक्का अर्पित

महाकाल मंदिर में कल मनेगी दीवाली, भस्मारती में फुलझड़ी आरती का आकर्षण

उज्जैन, अग्निपथ। विश्व प्रसिद्ध महाकालेश्वर मंदिर में 24 अक्टूबर को दीपावली मनाई जाएगी। तडक़े 4 बजे भस्म आरती में पुजारी परिवार की महिलाएं भगवान महाकाल को केसर चंदन का उबटन लगाएंगी। इसके उपरांत भगवान महाकाल को गर्मजल से स्नान कराया जाएगा। शृंगार के पश्चात अन्नकूट का महाभोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी। मंदिर की परंपरा अनुसार धनतेरस पर 23 अक्टूबर से दीपपर्व की शुरुआत होगी।

पुजारी आशीष गुरु ने बताया कि पूजन परंपरा कोई भी त्योहार सबसे पहले भगवान महाकाल के दरबार में मनाया जाता है। दीपावली भी कार्तिक अमावस्या की जगह कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन तडक़े 4 बजे भस्म आरती में मनाई जाती है। इसी दिन भगवान को अन्नकूट लगाया जाता है। इस बार तिथि मतांतर के चलते 24 अक्टूबर को सुबह चतुर्दशी व शाम को अमावस्या तिथि है इसलिये एक ही दिन दीपावली मनाएंगे।

तडक़े 4 बजे भस्म आरती में भगवान महाकाल को केसर, चंदन का उबटन लगाकर गर्मजल से स्नान कराया जाएगा। पश्चात सोने चांदी के अभूषण तथा नवीन परिधान धारण कराकर दिव्य स्वरूप में श्रृंगार किया जाएगा। उपरांत अन्नकूट का भोग लगाकर फुलझड़ी से आरती की जाएगी।

अगले दिन मनेगी दीवाली

महाकाल मंदिर में धनतेरस से दीपपर्व का शुभारंभ होता है। धनतेरस पर पुरोहित समिति द्वारा पूजन किया जाता है। पुरोहित पं.अशोक शर्मा ने बताया 23 नवंबर को सुबह 9.30 बजे कलेक्टर आशीषसिंह व प्रशासक संदीप कुमार सोनी के आत्थिय में देश में सुख,समृद्धि तथा आरोग्यता की कामना से भगवान महाकाल की पूजा अर्चना की जाएगी। देश, प्रदेश व नगर में समृद्धि बनी रही इसलिए पुरोहित भगवान महाकाल को चांदी का सिक्का अर्पित करेंगे।

26 को गोवर्धन पूजा

कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा पर 26 अक्टूबर को पुजारी परिवार की महिलाएं मंदिर के मुख्य द्वार पर गोवर्धन पूजा करेंगी। मंदिर समिति की चिंतामन स्थित गोशाला में गोवंश का पूजन होगा। गायों के श्रृंगार व पूजा अर्चना को लेकर तैयारी शुरू हो गई है।

शनि प्रदोष पर बाबा का रहा उपवास

शनि प्रदोष पर दिनभर बाबा महाकाल का उपवास रहा। सुबह उनको दूध का भोग लगाया गया। संध्याकालीन आरती में उनको नैवेद्य का भोग लगाकर आरती की गई। पुजारी आशीष गुरु ने बताया कि शनि प्रदोष पर भगवान महाकाल को केवल एक सायंकालीन समय में ही नैवेद्य लगाने की परंपरा है।

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