महिदपुर की बंधक भाजपा को मुक्ति दिला पाएगा संगठन
महिदपुर, (विजय चौधरी) अग्निपथ। भारतीय जनता पार्टी के संगठन महापर्व के दौरान 15 दिसंबर तक मंडल अध्यक्षों की निर्वाचन प्रक्रिया पूरी करनी थी। अधिकांश स्थानों पर यह प्रक्रिया पूर्ण हो चुकी है, लेकिन महिदपुर में गुटबाजी के चलते चारों मंडल अध्यक्षों का पेंच ऐसा उलझा कि पार्टी का अनुशासन तार-तार होने लगा।
संगठन निर्वाचन की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए एक गुट ने संगठन नेतृत्व द्वारा मंडल अध्यक्षों की घोषणा के पहले ही अपनी ओर से अध्यक्ष तय कर उनके स्वागत सत्कार कर ढोल धमाके की गूंज सोशल मीडिया पर छाने लगी।
उज्जैन के लोकशक्ति के बाहर संगठन की शक्ति को ठेंगा बताते हुए बाहुबल की शक्ति का प्रदर्शन निर्वाचन समिति ने प्रत्यक्ष देखा कि संगठन से बड़ा व्यक्ति होने लगा। तब जिम्मेदारों को समझ में आने लगा कि मामला अत्यंत गंभीर है। महिदपुर का मामला जिला और प्रदेश से ऊपर उठकर दिल्ली तक गूंजने लगा।
भाजपा के मंडल अध्यक्ष पद के लिए योग्यता का पैमाना ना होकर, जाति, समाज व गुटबाजी में विभाजन एवं बंटवारे की चर्चाएं गली, मोहल्लों से चलकर गांव की चोपालो तक होने लगी, जो सम्पूर्ण निर्वाचन प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है।
भले ही बात पार्टी के सक्रिय सदस्य बनाने की हो, पर्यवेक्षकों की रायशुमारी की हो या फिर जिला स्तर पर वरिष्ठ नेतृत्व एवं निर्वाचन समिति की बैठकों की हो, हर जगह जब एक व्यक्ति के अभिमान, जिद व अनुशासनहीनता के चलते संगठन के जिम्मेदारों द्वारा समन्वय बनाने के हर स्तर के प्रयास विफल हो गए हो तो ऊपर वालों को भी अब तो समझ में आ जाना चाहिए कि महिदपुर में भारतीय जनता पार्टी नामक संगठन को किसी गंभीर ने घेर लिया है, और यहां का पूरा संगठन एक व्यक्ति के द्वारा बंधक बना लिया गया है।
ऐसी स्थिति में संगठन के जिम्मेदारों को महिदपुर की बीमारी का इलाज गोली, दवाई से नहीं बल्कि मेजर सर्जरी से ही करना होगा। जब घमंड, अभिमान व स्वाभिमान के बीच चल रही लड़ाई सडक़ों पर उतर आए, जिसके प्रत्यक्षदर्शी सत्ता व संगठन के जिम्मेदार स्वयं हो, फिर तो हाईकमान को समझ लेना चाहिए कि महिदपुर का मामला आसान नहीं है।
भारतीय जनता पार्टी जैसी केडर आधारित, अनुशासन का दंभ भरने व अपने आप को आंतरिक लोकतंत्र वाली पार्टी का तमगा लेने वाली राष्ट्रीय पार्टी को महिदपुर विधानसभा के चार मंडल अध्यक्षों के निर्वाचन के लिए कड़ाके की ठंड में पसीना आ रहा है तो इसका सीधा सा निष्कर्ष यही निकाला जा सकता है कि पानी सर के ऊपर से निकलने लगा है और यह स्थिति अचानक निर्मित हुई हो ऐसा भी नहीं है। विगत दो दशक में यहां के निर्वाचित स्वयंभू दबंग जनप्रतिनिधि ने निर्बाध रूप से सत्ता और संगठन का व्यापक स्तर पर दोहन करते हुए पूर्ण रूप से भाजपा को बंधक बनाए रखा।
महिदपुर के पार्टी के कर्णधारों, नीव के पत्थरों, त्यागी, सेवाभावी, समर्पित व स्वाभिमानी कार्यकर्ता लंबे समय से महिदपुर में घटित हो रही घटनाओं से जिला, प्रदेश व राष्ट्रीय संगठन के साथ-साथ मातृ संस्था के जिम्मेदारों को भी अवगत कराते रहे, लेकिन सारे जिम्मेदार या तो कान में तेल डालकर सोए रहे या फिर धनबल, बाहुबल की अनुशासनहीन हरकतों के आगे नतमस्तक दिखाई दिए।
संगठन के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं को दिखावे के लिए राष्ट्रहित व समाज हित के बौद्धिक पिलाते रहे एवं निजी स्वार्थ के चलते महिदपुर वासियों के साथ छल कपट, अन्याय करते रहे। इन सब का दुष्परिणाम भाजपा द्वारा चलाए जा रहे संगठन महापर्व के दौरान महिदपुर में दिखाई दे रहा है।
महिदपुर में भाजपा के सदस्यता अभियान के पश्चात जब बारी सक्रिय सदस्य बनाने की आई तो ऊपरी संगठन के निर्देशों को पैरों तले रौंदते हुए पार्टी के जनसंघ, जनता पार्टी व भाजपा के निष्ठावान, अनुशासित, स्वाभिमानी एवं पात्र कार्यकर्ताओं को सक्रिय सदस्य इसलिए नहीं बनाया गया कि कहीं ये संगठन के पदों पर ताबीज ना हो जाए। इसके विपरीत महिदपुर क्षेत्र में अनेक कांग्रेसी पृष्ठभूमि वाले, जिधर दम उधर हम जैसी संस्कृति वाले लोगों को सक्रिय सदस्यता प्रदान कर दी गई।
सक्रिय सदस्य बनने के लिए संगठन की तय गाइडलाइन की खुले रूप से महिदपुर में धज्जियां उड़ाई गई। यहां तक कि ऐसे लोकतंत्र सेनानियों, वयोवृद्ध कार्यकर्ताओं तक को सक्रिय सदस्य नहीं बनाया गया जिन्होंने अपनी पीढिय़ां संगठन को खड़ा करने में लगा दी। जब इन सब बातों से पार्टी आलाकमान व जिम्मेदारों को अवगत कराया गया तो न कोई सुनने को तैयार न समझने को।
इन सारी स्थितियां से गुजरते हुए महिदपुर के मामले में भारतीय जनता पार्टी का संगठन इन दिनों दोराहे पर खड़ा है। आज जो परिस्थितियों संगठन चुनाव को लेकर सामने आ रही है उसमें देखना है कि पार्टी के जिम्मेदार महिदपुर की बंधक भाजपा को मुक्त करा पाने का साहस दिखाते हैं या भाजपा एवं अनुसांगिक संगठन महिदपुर को एक प्रयोगशाला के रूप में विकसित करना चाहते हैं।