भूटान यात्रा वृत्तांत भाग-9 ; सारे थिम्पू निवासी एक ही दिन 1 जनवरी को मनाते हैं अपना जन्मदिन

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे

जमकर रात्रि भोज के पश्चात सोने की तैयारी होने लगी, दिन भर की पहाड़ों की यात्रा के कारण नींद जल्दी अपना असर दिखाने लगी। सुबह नाश्ते का समय आठ बजे का तय किया गया। चूँकि टूर में सुबह के भोजन का समय निर्धारित नहीं रहता है इस वजह से नाश्ते को भोजन की तरह ही किया जाता है, और दूसरा कारण होटल के किराये में बे्रकफास्ट शामिल रहता है इस वजह से भी दबाकर किया जाता है।

कूल-कूल कमरों में आकर हम सभी नींद के आगोश में चले गये। सुबह निर्धारित समय पर डायनिंग हाल में नाश्ते की टेबलें सजी हुयी थी। सब्जी पूरी, ब्रेड, आमलेट, मीठा हलवा, पोहा, चाय, कॉफी, तरबूज, केले सब कुछ था भरपेट नाश्ता किया सभी ने। ठीक 8:45 पर टेकराज आ गया गाड़ी लेक,र हम सब उस पर सवार होकर भूटान यात्रा के पहले दर्शनीय स्थल की ओर चल पड़े।

राष्ट्रीय पशु ‘ताकिन’

मुश्किल से 20 मिनट की यात्रा उपरांत ड्रायवर ने गाड़ी रोक दी हम आ पहुँचे थे भूटान के राष्ट्रीय पशु ‘ताकिन’ को देखने यह पशु धार्मिक इतिहास और पौराणिक कथानों से भी जुड़ा होकर दुर्लभ जानवर है, इसकी गर्दन मोटी और छोटी मॉसल टाँगे होती है। भूटान के वन विभाग ने इसे देखने पर भारी टिकट लगा रखा है प्रति व्यक्ति 300 रुपये, हमने 1800के छह टिकट खरीदे। अंदर एक बड़े बाड़े में जालियों के अंदर मिनी चिडिय़ा घर में १०-१५ ताकिन को घेरकर रखा गया है। हमें तो कुछ खास नहीं लगा यह तो हमारे अरुणाचल प्रदेश में भी पाया जाता है। पहले ही स्थान पर निराश हुए 1800 भी चले गये।

इस ताकिन की कहानी भी जोरदार है। धड़ गाय का मुँह बकरी वाले इस पशु के बारे में बताया जाता है कि आज से 1000 साल पहले 15वीं शताब्दी में बौद्ध धर्म के एक सिद्ध ‘लामा’ (भिक्षुक) थिम्पू आये थे उनके अनुयायियों ने उनसे कुछ चमत्कार बताने को कहा, लामा ने कहा चमत्कार तो मैं बताऊँगा पर उसके पहले मुझे भरपेट भोजन कराओ और भोजन में गाय और बकरी पेश की जाये। अ

नुयायियों ने उनके आदेश का पालन किया। लामा ने हड्डियों को छोडक़र गाय और बकरी का पूरा माँस खाकर सिर्फ हड्डियां ही छोड़ी। भोजन उपरांत लामा ने पड़े हुए हड्डियों के ढेर में से गाय का धड़ और बकरी का सिर जोड़ दिया और देखते ही देखते एक नया पशु जिंदा हो गया जिसका नाम ‘ताकिन’ रख दिया गया। चूँकि यह धर्म और चमत्कारों से जुड़ा हुआ है इसलिये इसे भूटान का राष्ट्रीय पशु घोषित कर दिया गया।

मिनी चिडिय़ाघर से निराश होकर निकल पड़े हम दुनिया के खुशहाल शहरों में से एक थिम्पू की सुंदरता को निहारने। प्लास्टिक पर पूरी तरह से प्रतिबंध वाला थिम्पू तम्बाकू मुक्त शहर भी है। पूरे शहर में यातायात प्रबंधन के लिये एक भी लाईट के संकेतक नहीं है, लोग स्वप्रेरणा से अनुशासन में रहते हैं और कहीं भी जाम की स्थिति नजर नहीं आती।

थिम्पू की एक और बात बहुत निराली है यहाँ के सारे ही निवासी अपना जन्मदिन एक साथ साल के पहले दिन 1 जनवरी को ही मनाते हैं। साल के नये दिन बहुत बड़ा जश्न होता है थिम्पू के किसी भी निवासी से आप उसका जन्म दिनांक पूछेंगे तो सभी का एक ही जवाब होगा 1 जनवरी। मठों और बौद्ध स्तूपों के इस शहर में धू्रमपान पूरी तरह से प्रतिबंधित है विशेष परिस्थितियों में चिकित्सक द्वारा दिये गये परमिट पर ही आप धू्रमपान कर सकते हैं। यदि आप बिना परमिट बीड़ी-सिगरेट पीते हुए पाये जाते हैं तो आपको जेल की हवा खानी पड़ी सकती है। अब हम जा रहे हैं भूटान के सबसे खूबसूरत जगह ‘सिम्पली भूटान म्यूजियस’।
शेष कल

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