‘विध्वंस के बिना नहीं विकास’ यह प्रकृति का नियम है और शायद अनादि काल से चला आ रहा यह निगम आज भी शाश्वत है। बीते दिनों प्रसिद्ध ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर मंदिर के सामने वर्षों पुराने मकानों को मंदिर परिसर विस्तार के लिये जमींदोज कर दिया गया।
हालांकि स्थानीय जिला प्रशासन द्वारा शासन द्वारा निर्धारित मुआवजा मकान मालिकों को दिया गया। हम इस शहर के विकास हेतु पूरी तरह शासन-प्रशासन के साथ हैं परंतु फिर भी इन टूटे मकानों के कारण ढेर लगे मलबे से उठा बेरोजगारी का रूदन हमें असीम वेदना दे रहा है।
मकान मालिकों को तो मुआवजा मिल गया परंतु इन जमींदोज 10 मकानों में जो किरायेदार थे वह और जो व्यापार-व्यवसाय करके अपने प्रतिष्ठानों में लोगों को रोजगार दे रहे थे उनके सिर पर से अचानक आसमान हट गया वह सभी किरायेदार और व्यवसायी सडक़ पर आ गये।
भविष्य में यदि 70 मीटर दायरे तक विस्तार के लिये मकानों का अधिग्रहण किया जाता है तो एक मोटे अनुमान के अनुसार इस शहर के लगभग 2175 लोग प्रत्यक्ष रूप से बेरोजगार होंगे इसके अतिरिक्त अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या हजारों में हो सकती है।
यदि परिवार का मुखिया 5 सदस्यों का भी पालन पोषण करता है तो 2175×5=10875 लोगों के सामने रोजी-रोटी का यक्ष प्रश्न खड़ा हो जायेगा। महादेव का अर्थ ही महान ईश्वरीय शक्ति होता है। त्रिदेव में से एक शंकर महादेव, महेश, रूद्र, नीलकंठ, गंगाधर, महाकाल, आदिदेव, चन्द्रशेखर, जटाधारी, नागनाथ, मृत्युंजय के नाम से जाने वाले शंकर जी का एक रूप सृष्टि के संहारकर्ता का भी है।
शिव का अर्थ कल्याणकारी भी माना गया है परंतु हमेशा ‘लय और प्रलय’ दोनों ही इनके अधीन हैं। व्याधि, दुख: एवं मृत्यु का विधान भी शिव ही करते हैं शायद मंदिर के सामने अपने ही भक्तों के अरमानों के संहार का काम भी इस बार महाकाल ने ही किया है।
मलबे के ढ़ेर से निकल रही आहों से भोलेनाथ नहीं पसीजेंगे ऐसा हो नहीं सकता क्योंकि ‘भोलेनाथ’ को सृष्टि के संहारक के साथ ही कोमल ह्रदय, दयालु, आसानी से अपने भक्तों को माफ करने वाले के रूप में भी जाना जाता है। यदि इस 5 लाख की जनसंख्या वाले छोटे से हमारे शहर उज्जैन के दो हजार से ज्यादा लोग बेरोजगार होते हैं और उनके घरों के चूल्हें जलना बंद हुए तो इस कीमत पर विकास बेमानी होगा।
इस बात से इंकार नहीं किया जाता है कि इस शहर की आत्मा महाकाल मंदिर में ही बसती है बंद हो चुकी औद्योगिक इकाइयों के बाद इस प्राचीन शहर की रोजी-रोटी का सहारा एकमात्र महाकालेश्वर का मंदिर ही है। भगवान शिव के दर्शनों के उद्देश्य से देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु प्रतिवर्ष यहाँ आते हैं जिसके फलस्वरूप लोगों को रोजगार मिलता है चाहे वह हारफूल बेचने वाले हो, रेस्टोरेन्ट वाले, होटल वाले, रिक्शा वाले हो, सब धार्मिक पर्यटन पर ही आश्रित है।
महाकालेश्वर मंदिर परिसर का सौन्दर्यीकरण, विस्तार होगा तो निश्चित रूप से यहाँ का पर्यटन और सजे, संवरेगा जिससे रोजगार भी बढ़ेगा और शहर के विकास में चार चाँद भी लगेंगे, परंतु विस्तारीकरण की लंबी चौड़ी योजनाओं के निर्माण के समय उनसे प्रभावित होने वाले नागरिकों के बारे में भी सोचा जाना नितांत आवश्यक है।
करोड़ों की मोटी फीस लेने वाली कंसलटेंट कंपनियों को चाहिये कि जिस तरह किसी मार्ग निर्माण में बाधा बन रहे पेड़ को हटाया जाता है तो उसकी जगह निर्माण करने वाली एजेंसी को 1 की जगह 10 पेड़ लगाकर देना होता है इसी तरह ऐसी भारी-भरकम योजनाओं में 1 दुकान प्रभावित हो तो उसकी जगह दो दुकानों के निर्माण का भी प्रावधान किया जाना चाहिये। इसके लिये ना तो स्थान का अभाव है और ना ही धन का।
योजनाओं को मूर्त रूप में आयाम देने में संलग्न प्रशासनिक अधिकारियों एवं शहर के जनप्रतिनिधियों का भी यह नैतिक दायित्व है कि वह मानवीय पहलुओं को दृष्टिगत रखते हुए अभी और भविष्य में बेरोजगार होने वाले नागरिकों के पुनर्वास पर भी ध्यान दें तभी महाकाल मंदिर विस्तारीकरण की साथर्कता होगी।
जय महाकाल