पर्यावरण को बचाने की मुहीम के लिए इंजीनियर की नौकरी छोड़ी
उज्जैन, अग्निपथ। प्रकृति को बचाने के लिए पेड़ पौधे लगाने की सिख सभी देते है, लेकिन इस पर अमल न के बराबर किया जाता है। लेकिन उज्जैन में एक संत ऐसे है जो रामकथा से प्रेरणा मिलने पर 42 साल से पौधे लगा कर उनकी अपने बच्चों की तरह देखभाल कर रहे है। यहीं वजह है उनके कारण शहर के कई उजाड़ क्षेत्र हरे-भरे नजर आते है।
मूल रूप से पंजाब स्थित फिरोजपुर के गांव फरमावाला में जन्मे 74 वर्षीय सुखदेव मुनि पेशे से इंजीनियर थे। करीब 42 साल पहले पत्नी बच्चों को पटियाला में छोडकऱ उज्जैन आए और बड़ा उदासीन अखाड़े के महंत के शिष्य बनकर अलखधाम आश्रम के हो गए। इस के बाद पर्यावरण को बचाने की मुहिम में शामिल होकर पौधे लगाने का सिलसिला शुरू किया जो आज तक नहीं थमा।
मुनि का पेड़ पौधों से लगाव का नतीजा है कि कभी उजाड़ रहे कालिदास एकेडमी, सुमन पार्क, विक्रम युनिर्वसिटी मार्ग आज हरे भरे नजर आते है। यहीं नहीं गुजरात व राजस्थान के आश्रम जाने पर भी वहां भी बड़ी संख्या में पौधे लगाते रहे। पौधों के प्रति उनके इस जूनुन को देखते हुए अब समाजसेवी व बच्चें भी जूड़ते गए। नतीजतन अब तक वह लाखों पौधे लगा चुके हैं, जिनकी छाया और फल लोगों को मिल रहे है।
रामलीला से प्रेरित होकर लगाने लगे पौधे
मुनि को एक बार राम लीला में सीता का किरदार निभाते हुए पेड़ के वाकये ने उन्हें काफी प्रभावित हुए। फिर एक राजा की कहानी में भी पौधारोपण से फांसी पर चढऩे वाले को जीवन दान मिलते सुना। बस उसी दिन से वह बरसात में झोले में बीज भरकर उजाड़ क्षेत्रों में जाकर गड्डों में बीज डालने का नियम बनाया और गर्मी में जहां पौधे दिखते उन्हें कैन से पानी डालने लगे। मुनिजी ने बताया कि उन्हें अब याद नहीं कि कितने पौधे लगा चुके है,लेकिन अगर वह पौधे नहीं लगाए या प्रतिदिन पानी न दे तो बीमार पड़ जाते है। इसलिए जब तक पौधे है तब तक ही उनका जीवन है।