यात्रा वृत्तांत भाग-20 : सपनों की दुनिया की सैर है गंगटोक, पर्वत हर पल रंग बदलकर छूते हैं आसमान

अर्जुन सिंह चंदेल

गतांक से आगे

बहुत खुबसूरत है हमारा सिक्किम और यहाँ के लोग। ऊपर वाले ने बहुत उदारता के साथ अपनी नेमत धरती के इस टुकड़े पर लुटा दी है। हिमालय की गोद में बसे देश के सबसे छोटे राज्य की राजधानी गंगटोक पहुँच गये थे हम। इसकी सीमाएँ तिब्बत, भूटान, नेपाल और बंगाल को छूती है। दुनिया की तीसरी और हमारे भारत की सबसे ऊँची चोटी कंचनजंगा के घर सिक्किम में अँग्रेजी, गोरखाखस भाषा, लेरचा, भूटिया, लिम्बू और हिंदी आधिकारिक भाषाएँ हैं। यहाँ हाथ से बुने कपड़े, कालीन और कंबल के साथ घडिय़ां और घड़ी के गहने भी बनते हैं।

होटल ‘मेडालियो बुटिक’ के शुभारंभ से पहले ग्राहक

गंगटोक के लोग गर्मजोशी से भरे हुए सरल और मिलनसार, प्रकृति प्रेमी होते हैं ऐसा हमने पढ़ा और सुना था पर सचमुच जब हम आरबिट इंटरनेशनल यूनिट की होटल ‘मेडालियो बुटिक’ के महाप्रबंधक राजेश जी से मिले तो हमने जो पढ़ा व सुना था वह सच में तब्दील हो गया। हमारी टीम का सौभाग्य और बाबा महाकाल का आर्शीवाद देखिये जिस तीन सितारा होटल का औपचारिक शुभारंभ 19 जनवरी को होने वाला था हम 12 जनवरी को ही उसके पहले ग्राहक बन गये।

अभी तो कर्मचारियों की टे्रनिंग ही चल रही थी। बहुत ही गर्मजोशी से हम सभी का स्वागत किया गया टुपट्टे ओढ़ाकर, मंगल तिलक लगाकर, वेल्कम ड्रिंक्स दिया गया। कमरे बहुत ही लग्जरी थे, मजा आ गया। कमरों की खिडक़ी से बाहर का नजारा बहुत सुंदर दिखायी दे रहा था। राजेश जी ने अगले दिन की हमारी सारी व्यवस्थाएँ जमा दी थी। गंगटोक शहर के साईट सीन से लेकर 14 जनवरी को ‘नाथूला दर्रे’ की परमिट तक की। रात का खाना होटल मेडालियो में ही आर्डर किया। नया किचन, नया शेफ स्वाद में मजा आ गया।

मठों की भूमि गंगटोक

पहाड़ पर बसे गंगटोक की रात बहुत नयनाभिराम लग रही थी। 13 जनवरी की सुबह इनोवा गाड़ी से हम लोग रानी पूल नदी के पश्चिम छोर पर बसे गंगटोक की सुंदरता निहराने निकल पड़े। सिक्किम प्रदेश का सबसे अधिक आबादी वाला शहर गंगटोक जिसे स्थानीय भाषा में गांतोक भी कहा जाता है मठों की भूमि भी कहलाता है क्योंकि बौद्धों के प्रमुख तीर्थ स्थल भी यहाँ पर है। मठ, महल और प्राचीन मंदिरों की यहाँ बहुतायत है।

आकर्षण का केन्द्र ताशी व्यू पाईन्ट

गंगटोक में सन् 1642 से लेकर 1975 तक बौद्ध शासन रहा है। गंगटोक में सबसे पहले हम पहुँचे ‘ताशी व्यू पाईन्ट’ सिक्किम के पर्यटन विभाग की कार्यकुशलता देखते ही बनती है प्राकृतिक झरने के स्थल को इतने अच्छे ढंग से विकसित किया है कि यह स्थान गंगटोक का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र बन पड़ा है। लगभग एक से डेढ़ घंटा वहाँ का आनंद लिया, खूब फोटोग्राफी की, रोमांचक खेल भी थी वहाँ पर नवजवान युवक-युवतियां उसका आनंद ले रहे थे।

वहाँ से निकलकर ‘फ्लावर शो’ देखा जिसमें ज्यादा मजा नहीं आया फिर गणेश टोक जो कि गणेश जी का प्राचीन मंदिर है और काफी ऊँचायी पर बना हुआ है वहाँ से गंगटोक शहर बहुत सुंदर लगता है। गणेश टोक के सामने ही म्यूजिम और चिडिय़ाघर है जिसे देखने में साथियों ने दिलचस्पी नहीं दिखायी।

हनुमान टोंक से आकाश को छू रहे पर्वत

अब हमें निकल पड़े ‘हनुमान टोंक के’ लिये जो बहुत ऊँचाई पर था और भारतीय सेना के कब्जे में। भारतीय सेना के प्रत्येक डिवीजन के सैनिकों की ड्यूटी 2 माह के लिये लगायी जाती है। हनुमान जी की पूजा से लेकर पूरे परिसर का संधारण कार्य सेना के जवान मुस्तैदी से करते हैं। हनुमान टोंक पर पहुँचकर ऐसा लग रहा था हम सपनों की दुनिया की सैर पर हैं।

वहाँ से पर्वत ऐसे लग रहे थे मानो आकाश को छू रहे हो और हर पल अपने रंग बदल रहे हो। अद्भुत नजारा था बहुत बेहतरीन नजारा था। हम आनंद ले ही रहे थे कि ठंडी हवाएं तेज हो गयी और बारिश शुरू हो गयी, हम मंदिर परिसर में रूककर ही बारिश खत्म होने का इंतजार करने लगे। बारिश तो बंद हो गयी पर सर्दी बढ़ गयी। लोगों ने हमें बताया दूर बर्फबारी हो रही है। यह सूचना हमारे लिये बुरी खबर थी, क्यों?
शेष कल

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